For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रस्तावना

       साहित्य भाषाओं की सीमाओं के परे होता है। तमाम विधायें एक भाषा में जन्म लेकर दूसरी भाषाओं के साहित्य में स्थापित हुईं। हिन्दी भाषा साहित्य इससे परे नहीं रहा।

       बात छायावाद से शुरू करते हैं। छायावाद काल के काव्य में गीत एवं प्रगीत को प्रमुखता मिली इसीलिए इस काल को प्रगीत काल भी माना जाता है। इस काल के कवियों ने पश्चिमी स्वच्छंदतावादी काव्य के प्रभाव में प्रगीत शैली को अपनाया। वे सर्वाधिक अंग्रेजी प्रगीत काव्य धारा से प्रभावित थे।

       स्वरूप, पाठ्य विशेषताओं और गेयता के आधार पर अंग्रेजी प्रगीत और भारतीय गीत में काफी भिन्नता है। प्रगीत संगीत की लय में नहीं गाए जाते किंतु उनमें पर्याप्त माधुर्य और प्रवाह होता है। संगीत के विधान के अनुरूप गेय पद रचना, जिसमें काव्य एवं संगीत तत्व का संतुलन रहता है, गीत कहलाती है। पश्चिमी विद्वान पालग्रेव के अनुसार, ’प्रगीत (लिरिक) की रचना किसी एक ही विचार भावना अथवा परिस्थिति से संबंधित होती है तथा उसकी रचना शैली संक्षिप्त तथा भावरंजित होती है।’ शैली एवं आकार की दृष्टि से प्रगीत के छः स्वरूप हैं-

1. सॉनेट (चतुष्पदी)

2. ओड (संबोधन प्रगीत)

3. एलिजी (शोक प्रगीत)

4. सेटायर (व्यंग्य प्रगीत)

5. रिफ्लेक्टिव (विचारात्मक प्रगीत)

6. डाइडेक्टिव (उपदेशात्मक)

     

सॉनेट

       सॉनेट इटैलियन शब्द sonetto का लघु रूप है। यह छोटी धुन के साथ मेण्डोलियन या ल्यूट (एक प्रकार का तार वाद्य) पर गायी जाने वाली कविता है।

जन्म

       सॉनेट का जन्म कहाँ हुआ, इस पर मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सॉनेट का जन्म ग्रीक सूक्तियों (epigram) से हुआ होगा। प्राचीन काल में epigram का प्रयोग एक ही विचार या भाव को व्यक्त करने के लिए होता था। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इंग्लैण्ड और स्कॉटलैंड में प्रचलित बैले से पहले सॉनेट का अस्तित्व रहा है। यह भी मान्यता है कि यह सम्बोधिगीत (ode) का ही इटैलियन रूप है। एक मान्यता कहती है कि इस विधा का जन्म सिसली में हुआ और इसे जैतून के वृक्षों की छॅंटाई करते समय गाया जाता था।

इतिहास और स्वरूप

       सॉनेट को विशेष रूप से तीन आयामों में देखा-परखा गया है-

1. आकृति की विशिष्टता

2. भाव की विशिष्टता के साथ वैयक्तिक अभिव्यक्ति।

3. सर्वांगपूर्णता, कल्पना, प्रेरणा और माधुर्य।

 

इटली

       तेरहवीं शताब्दी के मध्य में सॉनेट का वास्तविक रूप सामने आया। फ्रॉ गुइत्तोन को सॉनेट का प्रणेता माना जाता है। इटली के कवि केपल लॉप्ट ने सॉनेट की खोज के लिए फ्रॉ गुइत्तोन को ‘काव्य साहित्य का कोलम्बस’ कहा है। फ्रॉ गुइत्तोन ने स्थापित किया कि सॉनेट की प्रत्येक पंक्ति में दस मात्रिक ध्वनियाँ होना चाहिए। गुइत्तोन के सॉनेट में कुल चौदह चरण होते हैं जो दो भागों में बॅंटे होते हैं-

 

1- अष्टपदी- अष्टपदी में पहली से चौथी की, चौथी से पाँचवीं की और पाँचवीं से आठवीं पंक्ति की तुक मिलायी जाती है। इसी तरह दूसरी से तीसरी की, तीसरी से छठवीं की और छठवीं से सातवीं पंक्ति की तुक मिलती है।

2- षष्ठपदी- षष्ठपदी में प्रायः पहली से चौथी की, दूसरी से पाँचवीं की और तीसरी से छठवीं पक्ति की तुक मिलायी जाती है। यह तीन-तीन चरणों में विभाजित रहती है। इसकी तुकान्त योजना में कुछ भिन्नताएँ भी हो सकती हैं।

       गुइत्तोन और उसके पहले के सॉनेट रचनाकारों ने Guido Bonatti द्वारा ग्यारहवीं सदी में स्थापित सांगीतिक अनुशासन को अपनाकर सॉनेट की संरचना को गढ़ा। गुइत्तोन का मानना था कि कोई भी सॉनेट लेखक अपनी सांगीतिक पद्धति भी बना सकता है।

       इसके बाद इटली के ही पेट्रार्का ने सॉनेट लिखे। पेट्रार्का की मान्यता थी कि सॉनेट का अन्त शुरूआत से अधिक लयात्मक होना चाहिए। पेट्रार्का और दान्ते ने गुइत्तोन सॉनेट में बदलाव भी किये। पेट्रार्का ने इसके लिए तीन तुकें निर्धारित की हैं। बाद में सॉनेट को तासो और अन्य कवियों ने भी अपनाया। इटली में प्रमुखतः सॉनेट के पाँच रूप मिलते हैं-

1. Twelve-syllabled lines (द्वादश मात्रिक सॉनेट)- इसमें एक पंक्ति में द्वादश मात्रिक ध्वनियाँ होती हैं। स्वर पर जोर नहीं होता, अन्त्याक्षर से तुक मिलायी जाती है।

 

2. Caudated or Tailed (पुच्छल सॉनेट)- इसमें दो या पाँच या इससे अधिक पंक्तियों का अनपेक्षित विस्तार होता है ।

3. Mute- यह एकाक्षरी तुकान्त वाला सॉनेट हास्य और व्यंग्य के लिए उपयुक्त होता है। इसमें दो अक्षर के तुकान्त भी होते हैं।

4. Linked or Interlaced (अन्तर्ग्रथित सॉनेट) - इसमें कोई कथा, भाव या विचार संगुम्फित होता है।

5. Conutinuous or Iterating (अविच्छिन्न सॉनेट)- इसमें ज़्यादातर एक ही तुक की सप्रवाह पुनरावृत्ति होती है। कभी दो तुकें भी मिलायी जाती हैं।

इंग्लैण्ड

       सॉनेट को फ्रांस के कवियों, इंग्लैंड में सरे और स्पेन्सर तथा स्पहानी कवियों ने भी अपनाया। जर्मनी में पेट्रार्कन शैली के सॉनेट रचे गये। अंग्रेजी में इसे सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन, वर्डसवर्थ और कीट्स ने रचा।

       सोलहवीं सदी में सर्वप्रथम Thomas wyat और Henry Howord (सरे) ने अँग्रेज़ी में सॉनेट लिखे। ये दोनों इटली में निवास के दौरान पेट्रार्का की कविताओं से प्रभावित हुए। Thomas wyat इटैलियन मॉडल को अपनाकर सॉनेट लिखते रहे। Henry Howord ने चौदह पंक्तियों की इतालवी शैली के साथ प्रयोग करते हुये दो तुकान्त संरचना अपनायी जो कि अँग्रेज़ी भाषा के लिए अधिक उपयुक्त थी-

A-b-A-b

C-D-C-D

F-F-F-F

G-G

       स्पेन्सर, शेक्सपियर और मिल्टन तीनों के सॉनेट इतालवी स्वरूप से भिन्न हैं। इनमें अष्टपदी और षष्टपदी के बीच अन्तराल दिखाई पड़ता है, लेकिन दोनों बँटे हुए नहीं है।

       स्पेन्सर ने इटैलियन और आरंभिक अँग्रेज़ी सॉनेट संरचनाओं को मिलाकर नया सॉनेट फॉर्म तैयार किया और इसी बदले रूप के साथ उन्होंने प्रेम सॉनेट ‘Amoretti’ शीर्षक से लिखे। एलिजाबेथ काल में बड़ी संख्या में लेखकों ने सॉनेट लिखे। फिलिप सिडनी ने इन्हें पूर्णता और सुन्दरता प्रदान की।

       स्पेन्सर के फॉर्मेट को शेक्सपियर और मिल्टन ने नहीं अपनाया क्योंकि इसमें छांदिक स्वान्त्रय नहीं था। शेक्सपियर ने डेनियल और ड्राइटन के सॉनेट ढाँचे को अपनाया। शेक्सपियर के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बजाय तीन चतुष्पदियों और एक द्विपदी लय से बँधे हैं। शेक्सपियर की 'Sonnet 116' में से कुछ पंक्तियाँ संदर्भ के लिए प्रस्तुत हैं।

‘Let me not to the marriage of true minds (a)
Admit impediments, love is not love (b)*
Which alters when it alteration finds, (a)
Or bends with the remover to remove.’ (b)*


       मिल्टन के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बीच नैरन्तर्य के लिए जाने जाते हैं। मिल्टन की एक रचना 'On His Blindness' की कुछ पंक्तियां यहाँ उदाहरण के रूपमें प्रस्तुत हैं जिससे इतालवी प्रारूप का आभास मिलता है-

‘When I consider how my light is spent (a)
 Ere half my days, in this dark world and wide, (b)
 And that one talent which is death to hide, (b)
 Lodged with me useless, though my soul more bent’ (a)


       इस प्रकार अंग्रेजी सॉनेट रचना की चार कोटियाँ निर्धारित की जा सकती हैं-

1. पेट्रर्कन

2. स्पेन्सरियन

3. शेक्सपीरियन

4. मिल्टानिक

भारत

       भारतीय उपमहाद्वीप में सॉनेट असमी, बंगाली, डोंगरी, अंग्रेजी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, सिन्धी, उर्दू आदि सभी भाषाओं में लिखे गये।

उर्दू

       ऐसा माना जाता है कि अज़मतुल्ला खान ने बीसवीं सदी के प्रारम्भ में इस विधा से उर्दू साहित्य का परिचय कराया। अख्तर जूनागढ़ी, अख्तर शीरानी, नून मीम राशिद, मेहर लाल सोनी, ज़िया फतेहबादी, सलाम मछलीशहरी, और वाज़िर आगा ने इस विधा पर हाथ आजमाए। ज़िया फतेहबादी के संग्रह ‘मेरी तस्वीर’ के एक सॉनेट, जो कि शेक्सपियर के सॉनेट के बहुत करीब है, की पंक्तियाँ देखें-

‘नज़र आई न वो सूरत, मुझे जिसकी तमन्ना थी (c)

बहुत ढूंढा किया गुलशन में, वीराने में, बस्ती में (d)

मुनव्वर शमा ऐ मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी (c)

मगर चारों तरफ था घुप अंधेरा मेरी हस्ती में’ (d)

हिन्दी

       हिन्दी में सॉनेट बीसवीं सदी में आया। हिन्दी के कुछ कवियों ने इसे अपनाया जरूर लेकिन इस विधा पर बहुत अधिक ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया।

       त्रिलोचन शास्त्री हिन्दी काव्य में सॉनेट के स्थापक माने जाते हैं। त्रिलोचन ने लगभग ५५० सॉनेटों की रचना की है।  त्रिलोचन ने इस विधा का भारतीयकरण किया। इसके लिए उन्होंने रोला छंद को आधार बनाया तथा बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुए चतुष्पदी को लोकरंग में रंगने का काम किया। उनके सॉनेट में 14 पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्रायें। सॉनेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में किए गए हैं, उन सभी को त्रिलोचन ने आजमाया। त्रिलोचन द्वारा इस विधा पर किए गए प्रयोगों की बानगी इन उदाहरणों में देखें-

'विरोधाभास' 
‘संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,
पाँवों में चक्कर था। द्रवित देखने वाले
थे। परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,
खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले।‘

आरर-डाल

‘सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आयी,

     झूठ क्या कहूं। पूरे दिन मशीन पर खटना,

बासे पर आकर पड़ जाना और कमाई

     का हिसाब जोड़ना, बराबर चित्त उचटना।‘

बिल्ली के बच्चे

‘मेरे मन का सूनापन कुछ हर लेते हैं

     ये बिल्ली के बच्चे, इनका हूं आभारी।

     मेरा कमरा लगा सुरक्षित, थी लाचारी,

इनकी माँ ले आई। सब अपना देते हैं’

प्रभो, पुत्र वह माँग  रही है

‘प्रभो, पुत्र वह माँग रही है।‘ ‘लिखा नहीं है।‘

फिर गोस्वामी तुलसीदास और क्या कहते।

तो भी दासी की विनयों में बहते-बहते।

तीन बार पूछा। प्रभु बोले, ‘लिखा नहीं है।‘

नामवर सिंह की एक रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें।

‘बुरा जमाना, बुरा जमाना, बुरा जमाना

लेकिन मुझे जमाने से कुछ भी तो शिकवा

नहीं, नहीं है दुख कि क्यों हुआ मेरा आना

ऐसे युग में जिसमें ऐसी ही बही हवा’

       त्रिलोचन की एक पूरी सॉनेट यहाँ उदाहरण के रूप् में प्रस्तुत है जो इसके स्वरूप, गेयता और तुकांत के लिए अच्छा उदाहरण हो सकती है-

सॉनेट का पथ

इधर त्रिलोचन सॉनेट के ही पथ पर दौड़ा;

              सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट; क्या कर डाला

             यह उस ने भी अजब तमाशा। मन की माला

गले डाल ली। इस सॉनेट का रस्ता चौड़ा

 

अधिक नहीं है, कसे कसाए भाव अनूठे

     ऐसे आएँ जैसे क़िला आगरा में जो

           नग है, दिखलाता है पूरे ताजमहल को;

गेय रहे, एकान्विति हो। उस ने तो झूठे

ठाटबाट बाँधे हैं। चीज़ किराए की है।

    स्पेंसर, सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन की वाणी

    वर्ड्सवर्थ, कीट्स की अनवरत प्रिय कल्याणी

    स्वर-धारा है, उस ने नई चीज़ क्या दी है।

 

    सॉनेट से मजाक़ भी उसने खूब किया है,

    जहाँ तहाँ कुछ रंग व्यंग्य का छिड़क दिया है।

       त्रिलोचन के बाद इस विधा पर बहुत कम काम देखने को मिलता है। आज जरूरत है इस विधा को हिन्दी में स्थापित करने की।

                                                              - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

Views: 19000

Replies to This Discussion

कैसा समझ का फेर आदरणीय और भ्रम क्या?
यहां पर मेरा पुन: स्पष्ट करना उचित रहेगा कि ऊपर pentameter(पंचपदीय) होने की सम्भावना व्यक्त की है iamb penta की नहीं।
जी सर इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए क्योंकि जिस आधारभूत सिद्धान्त से चर्चा की शुरुआत होनी चाहिए थी वह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया।
आशा है आपके अग्रिम लेख में शब्दों का अर्थ और भी बहुतकुछ सुस्पष्ट हो सकेगा।
सादर
इस विधा पर इतनी गहन परिचर्चा के पश्चात निवेदन करना चाहूंगी कि अभी तक के शोध के आधार पर,सानेट के लम्बे सफर और आए बदलावों को ध्यान में रखते हुए हिंदी में भी इस विधा के लिए एक ढांचागत सिद्धान्त प्रस्तुत करना सुनिश्चित किया जाय। जिससे हिंदी सानेट का भी एक स्वच्छंद स्वरूप निर्धारित हो सके (जैसे अन्य भाषाओं में आधारभूत नियम के अतिरिक्त कुछ न कुछ विशेष भी है),और नवीन प्रयास को प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।
त्रिलोचन जी की बहुरंगी सानेट्स तो हमारे समक्ष हैं पर अभी हम हिंदी के लिए किसी विशेष नियम का उद्घोष करने में शायद सक्षम नहीं हैं।अभी हमारे शोध में कमी है या...। हम सभी हिंदी भाषियों को मिल कर सकारात्मकता की ओर कदम भरना होगा।
यदि मैं सही हूं तो इस दिशा में निम्न विन्दुओं पर आपके विचारों का सादर आह्वाहन है-
*कितने बन्द हों और उनका क्या स्वरूप हो?
*तुकबन्दी का क्या विधान हो?
*लघु/गुरु का भी कोई नियम हो?
*यति और voltaआदि की क्या कोई भूमिका होगी यदि हां तो क्या?
*प्रत्येक पंक्ति में मात्राएं 24 हों
*गेयता/भाषा/रुख/विषय के सम्बन्ध में कोई विशेष बात स्पष्ट हो रही तो जरूर साझा करें।
और भी कई विन्दु निकल कर आएंगे लेकिन पहले इन विन्दुओं पर एक-एक करके चर्चा करना उचित रहेगा,ऐसा मेरा मत है।
आपका क्या मत है?
विधा पूर्णतय: स्थापित होने के बाद उसमें विविधता आती ही है।
सादर

इन बिन्दुओं पर आगे के लेखों में चर्चा करने का प्रयास रहेगा।

आदरणीय बृजेश जी, इस  विधा की विस्तृत जानकारी दे कर हम जैसो पर बहुत उपकार किया आपने | सादर  आभार स्वीकारें

आदरणीया मीना जी आपका बहुत आभार!
इस विधा को सीखने-समझने का मैं भी प्रयास ही कर रहा हूं।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
14 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service