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ग़ज़ल - तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए !

ग़ज़ल - 
हमने कुछ पौधे लगाए नाम पाने के लिए ।
और जंगल काट डाले आशियाने के लिए

टंग गए हर छत हर एक मुंडेर पर पिंजरे मिया,
हसरते सब मर गयीं चिड़िया चुगाने के लिए ।

 अब खबर में खेल में और ख़्वाब में बन्दूक हैं,
 कौन आगे आएगा बचपन बचाने के लिए ।

 पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
 बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए  ।

 क्यों करें बर्दाश्त बादल, आखिरश वो फट पड़े
 हम हदों को लांघते थे मौज पाने के लिए ।

 उन फिराकों साहिरों फैजों ने हमको सीख दी ,
 एक शाइर शाइरी करता ज़माने के लिए ।

आदमीयत का तरक्की से है उल्टा वास्ता ,
झुग्गियां गिर जायेंगी, होटल बनाने के लिए ।

फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।

ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।
       
             {* सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित }
                                 -   अभिनव अरुण 
                                []may-june-july2013[]

 
                         - 

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Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 2:54pm

बधाई का बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया शुभांगना जी  !!

Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 2:53pm

आदरणीया गीतिका जी , आपकी प्रशंसा पा ग़ज़ल धन्य हुई , बहुत आभार आपका !!

Comment by शुभांगना सिद्धि on July 26, 2013 at 2:22pm

बहुत खूब आदरणीय अभिनव जी हर एक शेर एक से बढ़ कर एक है बधाई स्वीकार करें!

Comment by वेदिका on July 26, 2013 at 12:53pm

कमाल की ग़ज़ल प्रस्तुत हुयी है, बेहद खूबसूरत, सभी अशआर बेहद खूबसूरत है, आपकी लेखनी गजब है, नमन!!     

Comment by विजय मिश्र on July 26, 2013 at 11:53am
अभिनवजी , हर शे'र पुख्ता और विषय की गहराई लिए हुए है ,त्रासद से प्रेरित यह रचना और अंतर्निहित सन्देश ,दोनों सशक्त हैं और सहज ही प्रवाह का निर्वाह करती है. मैं अधिकारपूर्वक तो नहीं मगर ऐसा लगता है कि 'आखरिश= अंततः' होना चाहिए 'आखिरश 'की जगह .

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Comment by rajesh kumari on July 26, 2013 at 8:56am

वाह वाह अरुण अभिनव जी कमाल की ग़ज़ल लिखी है हर शेर लाजबाब है अंतिम शेर पर तो बस वाह वाह ही निकल रहा है मुंह से हृदय से बधाइयां 

Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 7:57am

आदरणीय श्री आशीष जी ग़ज़ल आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ बहुत आभार आपका !

Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 7:56am

आदरणीय श्री आशीष जी ग़ज़ल आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ बहुत आभार आपका !

Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 7:55am

आदरणीया शुभ्रा जी आपने ग़ज़ल को पढ़ा और टिप्पणी की बहुत आभार आपका .

Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 7:53am

आदरणीया महिमा श्री जी आपकी बधाई मेरा मनोबल बढाएगी . बहुत आभार इस प्रतिक्रिया के लिए .

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