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भले ही आज जीवन में, तेरे कायम अँधेरा है
इसी दुनिया में ही लेकिन, कहीं रौशन सवेरा है

मै इक ऐसा परिंदा हूँ, नही सीमाएं है जिसकी
मेरी परवाज़ की खातिर, ये दुनिया एक घेरा है

कभी हिंदू कभी मुस्लिम. रहे हैं हारते हरदम
सियासत खेल ऐसा है, न तेरा है न मेरा है

कुतरते ही रहे है देश को, हरदम जहाँ नेता
इसे संसद न कहियेगा, ये चूहों का बसेरा है

न जलती है न मरती है, महज़ कपड़े बदलती है
“ऋषी” इस रूह की खातिर, ये जीवन एक डेरा है

अनुराग सिंह “ऋषी”

अप्रकाशित एवं मौलिक

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Comment by Anurag Singh "rishi" on June 9, 2013 at 2:05pm

आभारी हू सर उस स्नेह के लिए जो आपसभी से मिल रहा है नमन स्वीकारें
सादर  ----> आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा सर और वीनस केसरी सर :-)

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 1:04am

भाव और शिल्प स्तर पर यह एक कामयाब ग़ज़ल है और ग़ज़लकार बधाई का पात्र है
ढेरो दाद ...

हाँ कहन के स्तर पर कुछ कच्चापन दीखता है मगर जब भाव हो और शिल्प की समझ भी तो कहन पर काबू पाना बहुत मुश्किल कहाँ रह जाता है

शुभकामनाएं

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 2:18pm

बेहतरीन ..सादर बधायी के साथ 

Comment by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 11:32pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी
अवश्य मैम आपका सुझाव सर आँखों पर सीखना ही तो है मुझे आप सभी से
धन्यवाद आपको
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 11:30pm

आप सभी के इतने प्यार के आगे मै नतमस्तक और कृतघ्न हूँ
आप सभी गुणी जनों के इस प्यार ने एक नई ऊर्जा से परिपूर्ण कर दिया है
आशा है आगे भी आप सभी का आशीष ऐसे ही प्राप्त होता रहेगा
सादर नमन आप सभी को :-)

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:23pm

वाह वाह वाह 

क्या बात है बहुत सुन्दर आदरणीय 

मै इक ऐसा परिंदा हूँ, नही सीमाएं है जिसकी 
मेरी परवाज़ की खातिर, ये दुनिया एक घेरा है...लाजवाब 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:47pm

सुन्दर प्रयास! अच्छी ग़ज़ल कही आपने! बधाई स्वीकार हो ऋषि जी!

Comment by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 7:00pm
आदरणीय अनुराग भाई,क्या कहूं शब्द नहीँ मिलते,हार्दिक बधाई आपको!

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Comment by rajesh kumari on June 5, 2013 at 5:48pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है ऋषी जी ---बस इस पंक्ति पर सलाह देना चाहूंगी --- इसे संसद तो न कहिये, ये चूहों का बसेरा है----इसे संसद नहीं समझो ये चूहों का बसेरा है प्रिय अरुन  जी की बात पर गौर फरमाएं  दाद कबूल कीजिये |

Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 4:40pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

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