For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये  हादसे -
महज
अखबार की सुर्खियाँ
 पढ़कर इन्हें
जगती नहीं  संवेदना
 बेस्वाद नहीं होतीं
 चाय की चुस्कियां
ये हादसे............
देख- सुन
अत्याचार अनाचार
कछुवे की भांति निर्विकार
सर घुसा लेते हैं
विश्रांति की खोह में
सुस्ताते दो पल
और भूल जाते सब कुछ
जीने के मोह में
पाषाण बन जाती हैं
अनुभूतियाँ
ये..................
नुक्कड़,  चौराहों में
दफ्तर, मुह्ल्लों में
उछलते हैं जब
  मुद्दे यही
तो पान की पीक से
तर दाँत
और सिगरेट का धुंआ
उड़ाते मुख
देते जागरूकता की
गवाही
भुना लेते हैं विचार-
अभिव्यक्तियाँ
ये...............





Views: 443

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vinita Shukla on September 13, 2012 at 9:31pm

प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद रेखा जी.

Comment by Rekha Joshi on September 13, 2012 at 5:02pm

देख- सुन 
अत्याचार अनाचार 
कछुवे की भांति निर्विकार 
सर घुसा लेते हैं 
विश्रांति की खोह में 
सुस्ताते दो पल 
और भूल जाते सब कुछ 
जीने के मोह में 
पाषाण बन जाती हैं 
अनुभूतियाँ अति सुंदर अभिव्यक्ति विनीता जी ,हार्दिक बधाई 

Comment by Vinita Shukla on September 13, 2012 at 2:19pm

उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ, सौरभ पांडे जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 13, 2012 at 1:51pm

आज आदमी का घटनाओं और दुर्घटनाओं के सापेक्ष लगातार असंवेदनशील होते जाना आपकी रचना में कितनी गहनता से उभर कर आया है. वाह ! आपकी आगामी रचनाओं के प्रति उत्सुकता बनी रहेगी, विनिता जी.

शुभकामनाएँ

Comment by Vinita Shukla on September 13, 2012 at 12:15pm

आभार अम्बरीश जी, योगी जी.

Comment by Yogi Saraswat on September 13, 2012 at 11:24am

नुक्कड़,  चौराहों में
दफ्तर, मुह्ल्लों में
उछलते हैं जब
  मुद्दे यही
तो पान की पीक से
तर दाँत
और सिगरेट का धुंआ
उड़ाते मुख
देते जागरूकता की
गवाही
भुना लेते हैं विचार-
अभिव्यक्तियाँ
ये...............

विनीता जी , जितने सुन्दर शब्द उससे भी बेहतर विषय ! गंभीर विषय , सवाल छोड़ जाता है ! bahut सुन्दर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 11:15am

//देख- सुन
अत्याचार अनाचार
कछुवे की भांति निर्विकार
सर घुसा लेते हैं
विश्रांति की खोह में
सुस्ताते दो पल
और भूल जाते सब कुछ
जीने के मोह में
पाषाण बन जाती हैं
अनुभूतियाँ//

विनीता जी ! इस शानदार अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
5 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
46 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
49 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
54 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी सहृदय शुक्रिया आदरणीय इस मंच के और अहम नियम से अवगत कराने के लिए"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आपका सुधार श्लाघनीय है। सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service