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‎" ए.सी. और प्राइवेसी "

हे ईश्वर 
यह सच है की,
मैंने चाहा 'ए.सी' 
ये भी सच
मैंने माँगी 
'प्राइवेसी' 
हे अंतर्यामी 
रही चाहत मेरी सदैव 
रहूँ मैं लाईम-लाईट में
और
टिका रहे हर वक़्त मुझ पर ही कैमरा
आती रहे निरंतर कानो में
हरे-हरे नोटों के
फड़फड़ाने की आवाज़...
लेकिन
मेरी मुद्दत की तमन्नाओं का
ये क्या तर्जुमा.... मेरे परवरदिगार
आज खड़ा हूँ मैं बन कर
ATM का चौकीदार !!!

~ © AjAy Kum@r

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Comment

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Comment by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 7:04pm

मेरे सभी ज्ञानी मित्रों का शुक्रिया, एक छोटी सी कोशिश की थी आप सब को हंसाने की.... :)

Comment by Abhinav Arun on May 13, 2012 at 6:57pm

हा हा हा रचना की विविधता और व्यंग्य मुग्ध करता है हार्दिक शुभकामनाएं

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 1:34pm

हाँ अजय जी ऐसे ही सब कुछ प्रभु पूरा कर देता है इस लिए हमें सोच सम्हलकर सपने बुनने चाहिए ..वो कथा राजा जिसे छुए सोना बन जाए बाद में घर का सामन बेटा बेटी सोने में तब्दील ..फिर उसका भोजन भी .. ..सुन्दर ..भ्रमर ५ 

Comment by Bhawesh Rajpal on May 13, 2012 at 8:26am
बहुत खूब   ! अजय  जी , भगवान भी  मांगने वालों से कभी-कभी मजाक कर बैठते हैं  !
मजेदार  हास्य  !   हार्दिक बधाई  ! - भवेश  राजपाल  ! 
Comment by MAHIMA SHREE on May 12, 2012 at 6:47pm

हाहाहा बहुत खूब .. :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2012 at 12:52pm

हाहाहा ..अजय कुमार जी तुम्हारी सभी इच्छा तो पूरी कि है प्रभु ने, देखो ऐ सी भी है हरे हरे नोट भी हैं हर वक़्त सी सी कमरे भी तुम्हारी ऊपर लगे हैं प्राइवेसी भी है फिर शिकायत क्यूँ ???

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