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क्या भारत मेँ अन्तर्माध्यमिक तक हिन्दी एक अनिवार्य विषय नही होनी चाहिए

आज जहाँ सुनिये वहीँ भाषा का बिगड़ा स्वरूप सुनाई देता है। किस पुरुष का कर्ता है और कौन सी क्रिया लग गई पता ही नही। यह भी नही की यह युवा पीढ़ी ढंग से आंग्ल भाषा ही जानती हो। तो क्या हमारी और सरकार की यह जिम्मेदारी नही बनती की हमारी राज भाषा को समृद्ध बनाया जाय।
आज भारत मे बहुत से बोर्डोँ ने हिन्दी को अन्तर्माध्यमिक (इण्टरमीडिएट) कक्षा मे मात्र वैकल्पिक विषय के रूप मे रखा है। आप लोग अपनी राय देँ कि "क्या हिन्दी एक अनिवार्य विषय नही होना चाहिये?"

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aadarniya shri  Gyanendra Dutt Bajpai ji, maine aap logo ka vichaar jaajana chaha.

ye baat sach hai ki kai kshetro me log hindi bilkul nhi jaante, lekin apne desh ki koi to bhasha honi chahiye. kuchh to aisa hona chahiye ki log apne hi desh me rahkar yah na mahsus kare ki wo kisi anya desh me aa gya hai.

mare khayaal se hindi hi hai jo bhaarat me sabse adhik boli jaati hai, aur samjhi jaati hai. is dasha me agar hindi ko aur badhane ki aur apne desh ko, deshwaasiyo ko ek jabaan hindi dene hetu agar aisa kiya jaay to...............

aap kya sochte hai. sarkaar ko aur kya karna chaahiye desh ko ek apni bhaasha dene hetu.

 हिंदी को सारे देश में प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य करने की नीति या कानून .....

क्या जब हमारे देश मे कई आन्दोलन छिड़ रहे है इस समय हिन्दी को सम्मान दिलाने हेतु एक और आन्दोलन की आवश्यकता महसूस होती है।
यदि हिन्दी के परिपेक्ष्य मे बात की जाय तो, इसे कानूनी तौर पर लागू करने के लिये क्या कदम उठाने चाहिये जो उपयुक्त हो?

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