For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस बार का तरही मिसरा 'बशीर बद्र' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई"
वज्न: 212 212 212 212
काफिया: ई की मात्रा
रद्दीफ़: रह गई
इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

इसी बहर का उदहारण : मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ गाना "आजकल और कुछ याद रहता नही"
या लता जी का ये गाना "मिल गए मिल गए आज मेरे सनम"

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-2 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे-3 की रौनक बढाएं|

Views: 8674

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सबसे मिलकर भी इक बेकसी रह गई
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई

चाँद के जैसा मुखड़ा वो रोशन हुआ
पर जो जुल्फें उड़ी तीरगी रह गई

उनकी आमद से शादाब सारा चमन
बस निगाहों में इक तिश्नगी रह गई

उसके चेहरे की हर एक बारीकियां
बस ज़ेहन में वही तुर्फगी रह गई

मौत से पहले ही उनको मौत आ गई
जिनके हिस्से में बस मुफलिसी रह गई

कोई रहबर न ठोकर लगाता मुझे
पहले सी अब कहाँ दिल्लगी रह गई

यूँ तो बख्शा है सब कुछ खुदा ने तुम्हे
जाने क्यूँ सादगी की कमी रह गई

अब कन्हैया का कुछ भी पता न चले
पार जमुना के राधा खड़ी रह गई

जब से हम सब तरक्की की जानिब हुए
गंगा, मैया से बनकर नदी रह गई

घर से बाहर निकलने वो जब से लगी
ढूँढती तब से वो आदमी रह गई

लाख धो डाला चोले को तुमने मगर
पान की पीक जो थी लगी रह गई
रपट का जिम्मा तो योगी सर के सर है| रपट के लिए रपट लेनी पड़ेगी|
हर शे'र मन भाया.

यूँ तो बख्शा है सब कुछ खुदा ने तुम्हे
जाने क्यूँ सादगी की कमी रह गई

और

लाख धो डाला चोले को तुमने मगर
पान की पीक जो थी लगी रह गई

दोनों मन को छू गए.

मेरी बात;

मान का पान था, छूटता किस तरह?
इसलिए पीक जो थी लगी रह गई..
आचार्य जी
ऐसी पीक तो चाहूँगा की जिंदगी भर न छूटे|
आपके स्नेह से अभिभूत हूँ|
बहुत बहुत आभार|
मौत से पहले ही उनको मौत आ गई
जिनके हिस्से में बस मुफलिसी रह गई


जब से हम सब तरक्की की जानिब हुए
गंगा, मैया से बनकर नदी रह गई

वाह राणा जी, क्या गज़ब के शे'र कहे है आपने.
आशीष भाई
नवाजिशों के लिए शुक्रिया|
तीर थी ये ग़ज़ल तिसपे लम्बी बहुत,
जाके दिल में धँसी तो धँसी रह गई।
धर्मेन्द्र भैया|
बहुत बहुत धन्यवाद|
चाँद के जैसा मुखड़ा वो रोशन हुआ
पर जो जुल्फें उड़ी तीरगी रह गई

उनकी आमद से शादाब सारा चमन
बस निगाहों में इक तिश्नगी रह गई

उसके चेहरे की हर एक बारीकियां
बस ज़ेहन में वही तुर्फगी रह गई waah Rana bhiya waah .. aapkee tareef me mere lafz gum ho gaye .. aapruko me abhee chand se kuchh kirne maang kar latee hun aapkee tareef jo likhnee hai .. mujhe yakeen hai wo kirne bhee khud ko dhny manegee jo aapkee tareef me do lafz likh payegee .. wakai aap kamal likhte hain .. aaj ka din mukkmal ho gya ..
आशा दीदी
आप सबका स्नेह और आशीर्वाद ही तो हमें प्रेरित करता है|
बस अपने आशीष की छाया ऐसे ही बनाये रखियेगा|
यूँ तो बख्शा है सब कुछ खुदा ने तुम्हे
जाने क्यूँ सादगी की कमी रह गई,

बहुत खूब राणा भाई बड़े ही सादगी से बड़ी बात कह दी आपने,

अब कन्हैया का कुछ भी पता न चले
पार जमुना के राधा खड़ी रह गई,
वाह वाह, राणा जी, कृष्ण और राधा का विरह वर्णन , बहुत खूब , सब मिलकर एक अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति ,
बागी भैया|
सारे कर्ता धर्ता तो आप ही है| हम तो एक निमित्त मात्र है| अब जैसे तैसे ग़ज़ल हो गई..वर्ना आप तो जानते ही है मेरी क्या हालत थी|

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"उड़ने की चाह आदत भी बन जाती है।और जिन्हें उड़ना आता हो,उनके बारे में कहना ही क्या? पालो, खुद में…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service