For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तोड़ो इन्हें की अब तो मुरझा रहे है फूल.

डाली पे रहते-रहते उकता रहे है फूल.

.

जाते समय तो घर से जुड़े में हंस रहे थे

लौटते कदम है,कुम्हला रहे है फूल.

.

ख़ुशबुओ का लेकर पैगाम साथ-साथ

दोनों दिलो क़े रिश्ते सुलझा रहे है फूल.

.

देने को सब खड़े है बस आखरी सलाम.

मिटटी बनी है देह सुस्ता रहे है फूल.

.

महका रहे थे महफ़िल रातो को देर तक.

घूरे की शान अब तो बढा रहे है फूल.

.

अविनाश बागडे.

Views: 513

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 4:58pm

संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' ji,
शुक्रिया जनाब आपके सुझाव और दाद का.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 4:56pm

rajesh kumari ji ह्रदय से आभार.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 4:55pm
आपका ह्रदय से आभार. MAHIMA SHREE ji


आभारी हूँ.
Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 4:53pm
"ग़ज़ल में बहुत कुछ छिपा दिख रहा है ..."
सीमा जी आपकी पारखी नज़रों ने 'उस' छिपे को पकड़ा और एक बेहतरीन सी दाद में ढाल दिया.
आपका ह्रदय से आभार.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 4:49pm

neeraj bhaiबहुत-बहुत आभार.


NEERJA ARORA jiशुक्रिया.


राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' ji बहुत-बहुत शुक्रिया.


 PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA ...aabhar aapka.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 4:45pm

"जब किसी संज्ञा को रदीफ बनाया जाता है तो ग़ज़ल में नवीनता आ जाती है "


आदरणीय वीनस भाई इस हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया.
बहुत-बहुत आभार.
Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 1:33pm

जब किसी संज्ञा को रदीफ बनाया जाता है तो ग़ज़ल में नवीनता आ जाती है

सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए सादर नमन

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 22, 2012 at 4:55pm

मान्यवर श्री अविनाश जी, वाह! बहुत खूब. हर एक शेर उम्दा, हार्दिक बधाइयाँ. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 22, 2012 at 4:48pm

तोड़ो इन्हें की अब तो मुरझा रहे है फूल.

डाली पे रहते-रहते उकता रहे है फूल.

aadarniy avinash ji. sadar abhivadan. bahut sundar varnan pushpon ki sthiti ke anusar. badhai.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 22, 2012 at 3:11pm

बहुत ही सुन्दर भाव और कहन बिलकुल फूलों की ही तरह! एक निवेदन था कि आपकी यह रचना नज़्म मानी जानी चाहिए कृपया पुनः विचार करें| सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service