For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार में !!

हमको  रहना  चाहिए  अब  सोह्बते  तलवार  में !

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार  में !!

जब  तलक  उलझा  रहेगा  दामने  दिल  खार  में !
हम  सुकू  से  रह  नहीं  पाएंगे  इस  गुलज़ार  में  !!

नकहते  गुल  सुबहे  नौ शम्सो  कमर  अंजुम  जिया ! 
नेमतें  क्या  क्या  छुपी  है  यार  के  दीदार  में !!

मुद्दतो  जिस  सांप  को  हमने  पिलाया  खूने  दिल !
वो  डराना  चाहता  है  हमको  इक  फुस्कार  में !!

रोजो  शब्  मसरूफियत  कुछ  इस  क़दर  बढ़ने  लगी !
शायरी  को  वक़्त  मिल  पाता  है  बस  इतवार  में !!

तालिबे  शर्म  ओ  हया  हम , आप  उरयानी  पसंद !
फर्क  कितना  है  हमारे  आपके  त्यौहार  में !!

जैसा  रिश्ता  माँ  में  और  बेटे  में  होता  है  'हिलाल'  
है  फ़क़त  वैसा  ही  रिश्ता  फन  में  और  फनकार  में !! 
 

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hilal Badayuni on October 24, 2011 at 4:29pm

shukriya brij bhushan ji aur saurabh ji


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2011 at 4:04pm

इस ग़ज़ल के लिये मुबारकां .. सारे अश’आर बखूबी रंगभरे निखरे हैं.

बधाई

Comment by Brij bhushan choubey on October 24, 2011 at 12:48pm

जब  तलक  उलझा  रहेगा  दामने  दिल  खार  में !
हम  सुकू  से  रह  नहीं  पाएंगे  इस  गुलज़ार  में  !!.aha kya bat hai.... bahut khub bahut khua lajvab sher.

Comment by Hilal Badayuni on October 22, 2011 at 9:57pm
bahut bahut shukriya

aashish ji shashi ji aur ambrish sahab jo aapne ashaar pasand kiye aur mujhe duaon se nawaza...
Comment by आशीष यादव on October 19, 2011 at 7:24pm

आदरणीय हिलाल सर,

मै पहले से ही आपकी शायरी का कायल हूँ| आज फिर से आपने एक बेहतरीन ग़ज़ल पेश की है| हर एक शेर खुद में मुकम्मल है| क्या कमाल की बात कही है आपने| 

Comment by Shashi Mehra on October 19, 2011 at 7:10pm

हमको  रहना  चाहिए  अब  सोह्बते  तलवार  में !

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार  में !!

bahut khub

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 12:39pm

//तालिबे  शर्म  ओ  हया  हम , आप  उरयानी  पसंद !

फर्क  कितना  है  हमारे  आपके  त्यौहार  में !!//

भाई हिलाल जी ग़ज़ल अच्छी कही है ! मज़ा आ गया ! इसके लिए आपको बहत-बहत मुबारकबाद !
Comment by Hilal Badayuni on October 17, 2011 at 2:24am

shukriya bhai arun ji jo aapki muhabbatein mili is ghazal ko

Comment by Abhinav Arun on October 16, 2011 at 12:33pm
 अच्छी ग़ज़ल हिलाल जी | काफिये को बखूबी निभाया आपने कई शेर बेहतरीन और संदेशपरक भी बन पड़े है ! हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service