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भोजपुरी साहित्य में माई के गीत के साथ 'अतेन्द्र' क आगाज़ .......

टन-टन टन-टन घंटा बाजे

          मईया तोरे दुआरे

आस लगाके खड़ा बा निर्धन

             कब से तेरे सहारे

ओ मईया दे दे तू दर्सन्वा रे------ओ

 

अरऊल फूल सोहेला तुहें

   अऊर घिऊआ के बाती

नरिअर से त भोग लागेला

   देख चुनरी लाल सुहाती

जय जय जय जयकार लगाके

          लोगवा सबे पुकारे --------ओ

 

अहिरा दुधवा चढ़ावे अऊरी

        पंडित कथा कहेला

जय माता दी -जय माता दी

        हर पल रसवा बहेला

लेईके हाथ त्रिशूल ई देख

            शेरवा करे सवारी -------ओ

 

घन-घन-घन  घनघोर घटा बा

           हर-हर चलेला हऊआ

मईया के जब रथवा चले हो

          हिलेला तीनों लोकवा

मालिन फूल चढ़ावे खातिर

              रसता तोरे निहारे --------ओ

 

निबीं के डरिया परे हो झूला

        झूले सातों बहिनिया

देवता चांवर डोलावें देख

         फूटे सातो रगिनिया

महिमा लिखे *रवि* जन तोरे

        किरिपा से ही लिखावे ----------ओ

 

                          लेखक - अतेन्द्र कुमार सिंह *रवि*

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Replies to This Discussion

माई के बड़ा सुन्दर गीत लिखला भैया|
जय माता की|

ध्वन्यात्मक शब्द के प्रयोग अच्छा लाग रहल बा..

जब मइया के गीत, भा कवनो भक्ति-गीत, लिखल जाओ त मात्रा आ वर्ण दूनो के ध्यान राखल जरूरी होला. तहार एह गीत में एह तरी के प्रयासो भइल रहित त एह भजन के गेयता निकहा बढ़ि गइल रहित. ओइसे निकहा कोसिस बा..  बधाई.

 

एगो बात:

//घन-घन-घन  घनघोर घटा बा

हर-हर चलेला हऊआ

मईया के जब रथवा चले हो

हिलेला तीनों लोकवा

मालिन फूल चढ़ावे खातिर

रसता तोरे निहारे//

ई बतावऽ.. जब मइया के परताप से तीनों लोक काँपे लागो.. करिया घन घेराइल होखो.. हर हर हउआ आन्हीं अस चलत होखो त कवन माली भा मलिनिया ओढ़ल फूल चढ़ावे खातिर उनकर रस्ता निहारी..?? .. कहवाँ?? .. आ, ऊ रस्ता निहारी कि भागि चली??

भाई, मज़ाक ना.. हमार कहनाम अतने बा जे एक अंतरा में एकई भाव के बनावल-राखल गीत-रचना के प्रवाह आ खूबसूरती के तार्किको रूप से बढ़ा देला..  एह पऽ हमनी के ध्यान राखीं जा..

 

एक बेर फेर एह भक्ति-गीत पर बहुत-बहुत बधाई..

Aap dwara kail wiwechna bahut nik lagal. I kul milake aur badhiya likhe khatir prerit karela aa dosh dur kare me sahayak hola. Ekar bahut jarurat ba.
Saadar.

आशीष भाई,  तऽ .. ईहे नू ओबीओ पर हमरा के घींचले बा ....

ji.

सबसे पहिले आपके सादर प्रणाम बा अऊर माई क गीत तनिको कहीं भी पसंद आईल ओकरा खातीं बहुत बहुत धन्यवाद ......

एगो बात हमरो ओरी से प्रति उत्तर के रूप में  :

//घन-घन-घन  घनघोर घटा बा

हर-हर चलेला हऊआ

मईया के जब रथवा चले हो

हिलेला तीनों लोकवा

मालिन फूल चढ़ावे खातिर

रसता तोरे निहारे//

 

ईसन मान्यता बा  कि, अगर माई के किरिपा हो भी जाला त उनिके शुद्ध  रूप के दरसन बरा बिकट अऊर भयावह  होखेला ,मईया के दरसन ईसहीं नाही हो जाला,शायद वोहिके बखान करेके के  कोशिश कईले बानी  ...अगर एकरे बाद भी कऊनो गलती होखे त वोके चिन्हित करिके बताई कि का हो सकेला ...आभार .... 

 

अतेन्द्रभाई, तनिको पसंद का आवेला?

नया हस्ताक्षर हवऽ लोग. एह पीढ़ी से आगे चले आ कलम थामे के अपेक्षा होखी, कि, हमहूँ लिखनी   के बेजायँ संतुष्टि में ओदाइल लइकन के जमात देखीं जा?

भाई साहब, बतकूचन ना विचार होखो.  मान्यता के अपना जगहा रहे दियाओ. 

निकहे बुझा गइल त सुनीं, सहीं...  आ, नाऽऽ  त  महीं..

खूब लीखीं जा.... सस्नेह आशीर्वाद.

भाई अतेन्द्र जी, सौरभ भईया जवना बिंदु के बारे में रौआ के खुल के बतवलन ह, अमूमन वोइसे कोई ना बतावे ला, खाली इशारा भर कर देवेला, रौआ सौभाग्यशाली बानी कि गुणी जन के आशीर्वाद एह रूप में मिळत बा, आ ऐसन आशीर्वाद ओ बी ओ के मंच पर ही संभव बा,

राउर रचना ह, वोपर आइल सुझाव मानी भा ना मानी, लेखनी के विस्तार देवे के अगर होखो त माने के चाहि आ अगर स्वतः सुखाय में रहल चाहत बानी त मत मानी पर हर हाल में कुतर्क के सहारा ना लेवे के चाहि |

 

एक गीत में माई के भिन्न भिन्न रूप के चर्चा कर सकत बानी पर एक स्टेंजा एक भाव पर केन्द्रित होखल नीमन कहाला |

 

 

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