| (श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी) 
 सभी में पुरानी अदावत मिटा दें, चलो जिन्दगी को मोहब्बत बना दें. 
 नसीबी हमारी जो घर आप आये, चलो आज साथी मोहब्बत सिखा दें. 
 हजारों तुम्हें हैं मिले हुस्न वाले, मिलो आज साहिल से तुमको मिला दें. 
 निगाहों से पीना है फितरत हमारी, गुजारिश है उनसे हमें भी पिला दें. 
 जहां में सभी जो लगे खूबसूरत, निगाहों के आगे से चश्मा हटा दें. 
 दिलों बीच दीवार जैसा ये पर्दा, ज़रा आज रुख से ये पर्दा गिरा दें. 
 कुरेदो न जख्मों को ये जल रहे हैं, सफाई से मरहम जरा सा लगा दें. 
 मेरे यार दिल से ये निकली गज़ल है. इसे बांचकर अब जरा मुस्कुरा दें. 
 नहीं कोई दंगा कभी हो सकेगा, मुहब्बत का मजहब जहां में चला दें. 
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 (श्री अरविन्द चौधरी जी) 
 ग़मों को ज़रा मुस्कुराना सिखा दें , चलो ज़िंदगी को मोहब्बत बना दें. 
 बढाती रही दर्द तो ये दवा ही , इलाही करम कर,फ़कत तू दुआ दे.. 
 जभी छूट जाते रहेंगे किनारे , कि तूफ़ान में हाथ अपना बढ़ा दे... 
 बड़ी दूर मंजिल ,कदम लड़खड़ाते हमें हौसला दे,दिलासा दिला दे ... 
 समझने लगे दाम को आशियाना, परिंदे खुले आसमाँ में उड़ा दे ... 
 ग़ज़ल छेड़ता हूँ,मुझे साज देना ग़ मे-ज़िंदगी को ज़माना भुला दें .... 
 ----------------------------------------------------------- (श्री इमरान खान जी) (१) मोहब्बत उढ़ायें मुहब्बत बिछा दें, चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें। 
 शहर में हमारे न कोई तपिश हो, बनें सायबाँ हम सभी को मज़ा दें। 
 वहीं आज तक भी मकाँ ढूँढते हैं, सुकूँ से जहाँ ज़िन्दगानी बिता दें। 
 उठाया न हमने दरीचे नज़र को, हमी पर कहीं वो न बिजली गिरा दें। 
 मिरा ज़मज़मा है तुम्हारी बदौलत, चलो तुमको जाँ ए सुख़न में सजा दें। 
 हमी दाग़वाले सभी पाक दामन, चलो आबगीना सभी को दिखा दें। 
 वफ़ा के सफ़र पे भले चोट खायें, कभी भी न लेकिन किसी को दग़ा दें। (२) अँधेरा भगा दें के शम्में जला दें, चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें। 
 भरम ये वफादारियों के न टूटें, चलो रास्तों के ये पत्थर हटा दें। 
 पकड़ अँगुलियाँ जो हमारी चले थे, वही तो हमारे क़दम डगमगा दें । 
 शिकवो शिकायत से है फ़ायदा क्या, लबादे तहम्मुल जिगर को उढ़ा दें। 
 शहर ये तुम्हारा हमारा नहीं है, यहाँ से ठिकाना हमारा हटा दें। 
 रूठे मेरे यार कैसे मनाऊँ, मिरी गर खता है कड़ी ही सज़ा दें। 
 वाँ से हमारा उठा आबोदाना, यहीं नौ जहाँ आज फिर से बसा दें, 
 कली फूल टूटे शजर गिर न जायें, चलो बागबाँ से सभी कुछ बता दें। 
 हसीं नफरतों ने घरौंदा गिराया, माटी ए उल्फत दोबारा लगा दें 
 गर्मी ए उलझन हटाने की खातिर उसूलों भरा शामियाना सजा दें। (३) कहानी ए कीना ए सीना मिटा दें, चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें। 
 हाथों से बचपन चला तो गया है, मुझे ख़्वाब फिर तितलियों से मिला दें। 
 गुनाहे जवानी बहुत हो चुके हैं, इलाही की लौ में बुज़ुर्गी लगा दें। 
 ज़रूरी नहीं हर मसले को पूछें, तजुर्बे भी हमको सही मशविरा दें। 
 बहुत चल चुके हैं अँधेरी डगर पे, सही रास्तों का वो अब तो पता दें। 
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 (डॉ. बृजेश कुमार त्रिपाठी जी) (१) चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें खुदा की खुशी हम ज़मी पे बिछा दें 
 फलक पे जो तारे चमकते हैं टिमटिम चलो तोड़ कर उनसे धरती सजा दें... 
 अभावों में जीते रहे आज तक जो चलो उनको खुशियों का शरबत पिला दें 
 बहुत ढो चुका अबतक नफरत,ये आलम चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें 
 ज़रा प्यार से, जान-ए-मन! पास बैठो तो फूलों से हम इस चमन को सजा दें 
 बहुत काम बाकी अभी इस वतन में चलो इसको दुनिया में अव्वल बना दें 
 यहाँ पर जो छाई थी नूर-ए-खुदाई उसे फिर से खोजें, अँधेरे मिटा दें 
 चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें नया मकसद औ एक नया हौसला दें... 
 अभी दूर ही क्यों खड़े, जानेमन! हो जरा पास आओ,झिझक ये मिटा दें 
 बड़ी बेरहम, बेरुखी जिंदगी को चलो प्यार का, एक नया सिलसिला दें . 
 चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें (२). खुदाया हमें तू फक़त हौसला दे मेरी जिंदगी को मुहब्बत बना दे 
 वही दोस्त अपने हंसाते रुलाते.... वफ़ा करते करते अचानक दगा दें!!! 
 किसी को पता क्या कि इस जिंदगी में कोई आ के कब सारी गफलत मिटा दे ? 
 भरम पालना है नहीं शौक मेरा सचाई तो पर कोई आ के बता दे 
 मेरी जान तो बस यूँ अटकी तुम्ही पे चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दे 
 हर एक सांस को जिंदगी से मिला दे औ जीने का उसको नया सिलसिला दे 
 या रब केवल इतनी दुआ मांगता हूँ मेरे यार को जिंदगी की शफा दे 
 मेरे प्यार को सांसों का सिलसिला दे शिकन सब मिटा दे.. सुकूँ का सिला दे 
 हो थोड़ी या ज्यादा फर्क कुछ नहीं है चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दे 
 जीवन की बारीकियां तो सिखा दे मेरी जिंदगी को खुदाया सजा दे 
 खुदा सब्र इतने से मैं रख रहा हूँ चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दे (३) चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें ..... सियासत हटा कर दिलों में जगा दें 
 न झूंठे गुरूरों के झांसे में आकर ... मोहब्बत के दीवानों को हम सजा दें 
 उन्हें हम दुआएं न भी दे सकें तो दुश्वारिओं से कम-स कम बचा दें 
 'मोहब्बत खुदा' की नियामत समझ कर उसे बंदगी औ इबादत बना दें 
 मोहब्बत दिलों में जला के शमा सी चलो सारी दुनिया अभी जगमगा दें 
 मोहब्बत से कैसी अदावत? ऐ मालिक ! जो हैं नासमझ उन को ये तो बता दें 
 अभी प्यार को हौसले की ज़रुरत चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें 
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 (श्री अलोक सीतापुरी जी) (१) मोहब्बत है क्या चीज सबको बता दें, चलो जिन्दगी को मोहब्बत बना दें | 
 उठो सोने वालों सहर हो गयी है, जो गफलत में हैं उनको चलकर जगा दें | 
 मेरे कहकहे सुन के रोने लगोगे, अगर दास्ताँ अपनी तुमको सुना दें | 
 मुहब्बत की तलवार पे धार रखकर, जमाने के के जुल्म ओ सितम को मिटा दें | 
 अगर मात देना है रंज-ओ-अलम को, ग़मों को भुलाकर फ़कत मुस्कुरा दें | 
 तो फिर चाँद तारे भी होंगें पशेमां, अगर आप चेहरे से परदा हटा दें | 
 चलो आज आलोक थोड़ी सी पी लें, निगाहों से अपनी अगर वो पिला दें | (२) बवक्ते मुसीबत ये दम ख़म दिखा दें, कजां सामने देखकर मुस्करा दें. 
 भले तौबा तौबा है बादाकशीं में, निगाहों से अपनी मगर वो पिला दें. 
 भला पास ठहरेंगी कैसे बलायें, मेरे सर पे रख हाथ माँ जब दुआ दें. 
 हैं बारेगरां चन्द आंसू तुम्हारे, मेरे दिल के अन्दर समंदर जगा दें. 
 शबे वस्ल तुमको मुबारक हो प्यारे, मगर कैसी बीती हमें कुछ बता दें. 
 कहा उसने भैया मैं छोटी बहन हूँ, लो बांधूंगी राखी कलाई बढ़ा दें. 
 बहुत देख ली यार नफरत तुम्हारी, चलो जिन्दगी को मोहब्बत बना दें. 
 ये बज्म ए ओ बी ओ आलोक शायर, अदब से गज़ल मेरी पढ़कर सुना दें. 
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 (श्री मुईन शम्सी जी) 
 जो लड़ते हैं, हम प्यार उनको सिखा दें चलो ज़िंदगी को मोहब्बत बना दें । 
 वो दीवार जिसने हैं दिल बांट डाले उसे आज मिलजुल के, आओ, गिरा दें । 
 जो ढूंढोगे, रोते मिलेंगे हज़ारों बड़ा पुण्य होगा, उन्हें गर हंसा दें । 
 हो किरदार में अपने ऐसी बुलंदी है दुश्मन के दिल में जो नफ़रत, मिटा दें । 
 जो मानो अगर, तो है ये भी इबादत किसी भूख़े मानुष को खाना खिला दें । 
 सियाह रात हो जाएगी रोज़-ए-रौशन वो ज़ुल्फ़ें जो चेहरे से अपने हटा दें । 
 ख़ुदाया ये दिन कैसे ’शमसी’ के आए वो बनकर हमारे हमीं को दग़ा दें ! 
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 (गणेश जी "बागी") 
 नशा मौत है इसको जड़ से मिटा दें, चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें, 
 "हिना" को पठाते धमाके कराके, ज़ख्म हम दिलों के ये कैसे भुला दें, 
 निगाहें हैं शातिर अदा कातिलाना, चलेगा न जादू चलो हम बता दें, 
 न हिन्दू न मुस्लिम न सिख ना ईसाई, नया धर्म आओं मोहब्बत चला दें, 
 मोहब्बत खुदा की नियामत है "बागी" शमा प्रेम की सबके दिल में जला दें, 
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 (श्री बृज भूषण चौबे जी) 
 तू चाहे हँसा दे तू चाहे रुला दे ये जिंदगी है तेरी जो चाहे सजा दे , 
 पाने की खातीर है फैलाई बांहें, है मर्जी जितनी तू हमको खुदा दे , 
 मिलादे तू उनसे जो मिलते ना हमसे मोहब्बत बता दे मोहब्बत सिखा दे , 
 दिखाई दू उनको भरी भीड़ मे मै मेरी आह उनकी तड़प तू बना दे , 
 चले डाल क़र हम भी बांहों मे बांहें , चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दे , | (डॉ संजय दानी जी) 
 चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें, ज़मीं से अदावत की गलियां मिटा दें। 
 तेरे सीने में मर्द का आला हैं जो उसे हम ग़ुनाहों से लड़ना सिखा दें। 
 चराग़ों के व्होठों के अल्फ़ाज़ बन कर, किताबे-हवा की सियासत ढहा दें। 
 जिन्हें हुस्न की तबीबी है हासिल, वे क्यूं इश्क़ को बेबसी की दवा दें। 
 बहाकर पसीना विदेशों में हमदम, वतन की फ़िज़ा की तरावट बढा दें। 
 मरें तो समन्दर की बाहों में यारो, किनारों के तूफ़ां को हम ना हवा दें। 
 भटकते रहें क्यूं जवानी के बादल, तेरी बारिशों की गली का पता दें। 
 जिन्हें बेवफ़ाई की ग़ुरबत मिली है, उन्हें हम वफ़ा की कमाई दिखा दें। 
 बहुत पास है माहे रमजान दानी, चलो सब्र की धूप में सर झुका दें। 
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 (डॉ संजय दानी जी) 
 चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें, ज़मीं से अदावत की गलियां मिटा दें। 
 तेरे सीने में मर्द का आला हैं जो उसे हम ग़ुनाहों से लड़ना सिखा दें। 
 चराग़ों के व्होठों के अल्फ़ाज़ बन कर, किताबे-हवा की सियासत ढहा दें। 
 जिन्हें हुस्न की तबीबी है हासिल, वे क्यूं इश्क़ को बेबसी की दवा दें। 
 बहाकर पसीना विदेशों में हमदम, वतन की फ़िज़ा की तरावट बढा दें। 
 मरें तो समन्दर की बाहों में यारो, किनारों के तूफ़ां को हम ना हवा दें। 
 भटकते रहें क्यूं जवानी के बादल, तेरी बारिशों की गली का पता दें। 
 जिन्हें बेवफ़ाई की ग़ुरबत मिली है, उन्हें हम वफ़ा की कमाई दिखा दें। 
 बहुत पास है माहे रमजान दानी, चलो सब्र की धूप में सर झुका दें। 
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 (श्री हरजीत सिंह खालसा जी) (१) दिलो में फूल चाहतों के खिला दे.... चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दे... 
 चांदनी की ठंडक से सूरज बुझा दे, चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दे... 
 इक पल के ग़म, दूसरे पल भुला दे, चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दे.. 
 दिलों को मिलजुल के जीना सिखा दे, चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दे... 
 आंसुओ से आँखों का रिश्ता छुड़ा दे, चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दे... 
 महके हुए फूलों से दामन सजा दे, चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दे... 
 भटके हुओ को अपने घर का पता दे, चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दे... (२) ग़मों को कही दिल में गहरा छुपा दें, बहुत रो लिए अब चलो मुस्करा दें. 
 तुम्हारे अलावा नहीं कोई मौजूद, कहो तो तुम्हे चीर के दिल दिखा दें..... 
 गुनाह-ऐ-मुहब्बत में दोनों थे शामिल, हमें तुम सजा दो, तुम्हे हम सजा दें, 
 दिलों की ये बातें कहेंगे सिर्फ तुमसे, ये किस्सा नहीं वो कि सबको सुना दें.... 
 बनाना अगर है कुछ ज़िन्दगी को, चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें... ---------------------------------------------------------- (श्री संजय मिश्र हबीब) (१) ज़रा बंदगी का इसे आसरा दें. चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बना दें. 
 गये भूल सारे इश्क की अदाजो चलें आज सारे जहां को सिखा दें 
 क़जाया बढाता जमाले सियाही सभी साथ आयें बला को जला दें 
 वहाँ एक होजाँ शिगुफ़्ता दिखा है कहो तो उसीसू सफिना घुमा दें 
 शनाशा सभी का वही एक हादी हमें रासता जो हमारा दिखा दे 
 नुमायाँ खुदा की असालीब देखो अना को इसी का मुगन्नी बना दें 
 ‘हबीबी’ हमारा हमें पालता है सहारा सभी का वही है बता दे (२) ज़रा आंसुओं से कहो मुस्कुरा दें. चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बना दें. 
 यही है वसीला ज़हां की खुशी का, सभी के ग़मों को खुदी का पता दें. 
 इन्हीं बाजुओं ने समंदर उठाये, 'उन्हें' हौसलों का इशारा दिखा दें. 
 तभी तो नज़ारें बहारें बनेंगी, असासे कदा से निराशा मिटा दें. 
 शबेतार की तीरगी भी हंसेंगीं, ज़रा माहेरुख से परदा हटा दें. 
 यही दौलते याद मेरी ज़मीं है, यहीं पे मजारे हबीबी बना दें. (३) इसे इक दुआ सी मुक़द्दस बना दें. चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बना दें. 
 कहाँ को चले, ये कहाँ आ गए है, दिलों में पले क्यूँ अदावत बता दें. 
 दश्तो - दरख्त हैं मुहाफिज हमारे, कहो क्या सही है, इन्हें हम मिटा दे? 
 करें हम भला क्यों शिकायत खुदा से, सभी हैं उसी के उसे बस जता दें. 
 अभी आ गयी है महफ़िल भी रौ में, दिलकश खयालों का दरिया बहा दें. 
 उन्हीं की तस्वीरें वाबस्ता दिल में, गुलों सा हबीब की राहें महका दें. ----------------------------------------------------------- (श्री वीरेन्द्र जैन जी) 
 नफरतें मिटा फिर मुहब्बत फैला दें , चलो फिर जहाँ को जन्नत बना दें | 
 अगर तू कहे चाँद तारे ले आएं, कि फिर आज तेरी रातें सजा दें | 
 न जाने ये रात फिर कब हो हासिल , सुलगती साँसों में जिस्मों को जला दें | 
 ज़माना दे जिसकी मिसालें कुछ ऐसी , चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें | 
 लग जाएँ गले से इक दूजे के आओ , रो लें जी भर के ये आँखें सुजा दें | (२) लुटानी पड़े ग़र ये जां भी लुटा दें , मुहब्बत की सारी रस्में निभा दें | 
 नकाबे शराफत जो पहने हुए हैं , बगल में दबाई छुरी भी दिखा दें | 
 हरिक सांस पर नाम तेरा लिखा हो , चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें | 
 ये शब् ढल चुकी है वो अब तक न आया , उसे कैसे भूला सुबह का बता दें | 
 दबे पांव जाकर सिरहाने पे उनके , चलो सोते हुए ख़्वाबों को जगा दें | (३) कि इन हसरतों को मुकम्मल बना दें , किसी नाज़नीना पे दिल को लुटा दें | 
 फिजाओं पे लिख दें ये चाहत के किस्से , चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें | 
 ज़माने से सोया नहीं आसमां ये , करें नींद का सौदा इसको सुला दें | 
 अमीरी गरीबी में दुनिया बंटी है , ये कैसी लकीरें हैं इनको मिटा दें | 
 अहम् की ये दीवार अच्छी नहीं है , हमीं ने बनाई हमीं अब गिरा दें | 
 अगर तू करे आज आने के वादे , हम इन राहों पे चाँद तारे बिछा दें | 
 मुश्किल कर देंगी ये जीना हमारा , चलो मिल के मायूसियों को जला दें | ---------------------------------------------------------- (श्री रवि कुमार गुरु जी) (१). छोटी हैं जिन्दगी ख़ुशी में बिता दें , चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें, . आँखों पे पर्दा पड़ा जो किसी को , चलो मोहब्बत से उसको हटा दें , . दुश्मन देश के हैं जो ये सारे, चलो सब मिलकर उनको मिटा दें , . बाहर के दुश्मन से डर तो नही हैं , चलो पहले अन्दर के दुश्मन मिटा दें , . हैं अमीरी-गरीबी के भेद-भाव जब तक , शान्ति कहा चलो ये खाई मिटा दे , . सोच हैं हिंद ये रहे सब से आगे , चलो सब मिल ऐसी राहें बना दे , 
 (२) 
 चाहो उसी को जो दिल में जगा दें , चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें , 
 ख्वाबो सा सुन्दर ये नील गगन हैं , चलो इसको ही आशियाना बना दें , 
 मुहब्बत के दुश्मन मुहब्बत क्या जाने , मौत की चाहत हैं उसको बता दें , 
 मेरी जिन्दगी में वो दिन आये , की चाहत में तेरे राहें सजा दें , 
 मेरे जिन्दगी में बस तुहू तू हो , बोलो तो सीना चिर के दिखा दें , (३) चाहत अन्ना की हिंद को बता दें , चलो दिल्ली को खुबसूरत बना दें , . घोटालों का पैसा स्विस में रखें हैं , कुछ यैसा करे की यहाँ पे माँगा दें , . महंगाई से जार-जार हुए जा रहें हैं , चलो दिल्ली से सरकार ये हटा दें , 
 मेहनतकश के संग ये चलने वाले , एसी के अन्दर का चेहरा दिखा दें , . ये नहीं सोंचेंगे हम गरीबों का , अपना मुक्कदर हम खुदही बना दें , . आज उंच नीच की भेद-भाव मिटाकर , चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें, ---------------------------------------------------------- (श्री अतेन्द्र कुमार सिंह रवि जी) 
 जहाँ से अज़ब आशियाँ हम सजा दें चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दे 
 ज़मीं पे रहे न नफ़रतों के शोले अब्र-ए-इश्क़ से गुलिश्तां भीगा दें 
 गुलों कि ख्वाइश ना रहे दिलों में गुज़रना काटों पे सभी को सिखा दें 
 राक़ीबी दिखे ना ज़मीं पे कहीं भी इन्शानियत कि हर ओर रंगत खिला दें 
 लगे ना हवाओं पे कहीं आज पहरे यहाँ से वहां तक वो चिलमन हटा दें 
 रहे ना जहाँ में अँधेरा कहीं भी संग-ए-'रवि' अब रोशनी हम जला दें --------------------------------------------------------- (श्री सौरभ पाण्डेय जी) 
 दुआएँ अग़र अपनी फ़ितरत निभा दें सुराही व पत्थर की सुहबत करा दें ॥ 
 अभी तक दीवारों में जीता रहा है उसे खिड़कियों की भी आदत लगा दें ॥ 
 उसी पे मुहब्बत लुटाए मिला जो चलो बावरे को तिज़ारत सिखा दें ॥ 
 खुदाया गये दिन पलट के न आयें न आएँ, न सोयी वो चाहत जगा दें ॥ 
 नहीं ये कि बहती बग़ावत लहू में मग़र जब भी चाहें हुक़ूमत गिरा दें ॥ 
 नमो ब्रह्मऽविष्णु नमः हैं सदाशिव सधी धड़कनों में अनाहत गुँजा दें ॥ 
 रची थी कहानी कभी कृष्ण ने, वो - निभाएँ, महज़ ना भगवत करा दें ॥ 
 हमारी कहानी व चर्चे हमारे अभी तक हैं ज़िन्दा, बग़ावत करा दें ॥ 
 बयाँ ना हुई अपनी चाहत तो क्या है | चलो ज़िन्दग़ी को मुहब्बत बना दें ॥ 
 रहा दिल सदा से ग़ुलाबोरुमानी | हमें तितलियाँ क्यूँ न ज़हमत, अदा दें ॥ 
 | (श्री तुकाराम वर्मा जी) चलो ज़िंदगी को मोहब्बत बना दें | पयामे सदाकत सभी को बता दें || 
 जहाँ नफ़रतों के खुले हैं ठिकाने, वहाँ न्याय की बस्तियों को बसा दें| 
 जहाँ में अँधेरा कहीं रह न पाये , नयी रौशनी के दिये जगमगा दें | 
 मुनासिब नहीं आज ख़ामोश रहना, शराफ़त बढ़ाता हुआ फ़लसफ़ा दें | 
 'तुका' सूरतों से अधिक सीरतों को कहे जो ज़रूरी चलन वह चला दें | 
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 (सुश्री आराधना जी) उन धुन्ध्ली सी यादों को मद्धम सी हवा दें, माज़ी के पन्नों से चलो धूल हटा दें! 
 अन्वारे मोहब्बत से जो चरागां है ये महफिल क्यूं न इस शब कुछ हम भी सुना दें? 
 दिलकशी रह्गुज़र की, वो बहारों के किस्से राह-ए-मोहब्बत की हकीक़त बता दें! 
 जिन्दगी को मुहब्बत या मुहब्बत को जिन्दगी जितनी है कूबत बस उतनी बना दें! 
 क्यूं वादों से डर हो, क्यूं कसमे न खाएँ ? चलें साथ दोनो हर रस्म निभा दें! 
 कुछ ज़हन की सुन लें, कुछ दिल की सलाह लें' वही ख्वाब फिर से पलकों पे सजा दें ! 
 मसलसल सफर मे मोहब्बत भी हम भी कुछ हट कर चलें और मंज़िल मिटा दें! 
 है हद से भी ज्यादा तादाद रक़ीबों की किसे अपनी खबर भेजें किसे अपना पता दें? 
 वो हुस्न वो इश्क का मंज़र, वो तेरा साथ इनमे ही जियें हम-तुम, ज़माने को भुला दें ! 
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 (श्री राम अवध विश्वकर्मा जी) न ये तूल दें अब न वो अब हवा दें। बहुत हो चुका दुश्मनी को भुला दें। 
 दिलों में जो हैं दूरियाँ वो मिटा दें, चलो जिन्दगी को मुहब्बत बना दें। 
 बुजुर्गों से है इल्तजा ये दुआ दें, मुसीबत के मारे हुये मुस्करा दें। 
 कोई राम रहमान से जा के कह दे, न फिरकापरस्ती को इतनी हवा दें। 
 अनाड़ी हैं मल्लाह खूँखार दरिया , ये डर है कहीं वो न कश्ती डुबा दें। 
 कभी हाथ पर हाथ रख कर न बैठें, अँधेरा अगर हो तो दीपक जला दें। 
 यहाँ दाल उनकी नहीं गलने वाली , उन्हें साफ लफ्जों में सब कुछ बता दें। 
 ----------------------------------------------------- (श्री अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव जी) दिलों में जो संशय है उसको मिटा दें , चलो ज़िंदगी को मोहब्बत बना दें | 
 परिंदे कहाँ मानते सरहदों को , चलो अपनी नस्लों को उड़ना सिखा दें | 
 दिया जो हवाओं में जिद पे अड़ा है , रहे आँधियों में भी कायम दुआ दें | 
 मेरा शौक काँटों सलीबों से खेलूं , ज़माने के मुख्तार मुझको सज़ा दें | 
 अजाँ सुनके मीनार पे चढ़ गयी बेल , बुरी आँख वालों से इसको बचा दें | 
 ज़रा ढंग से खोल लें बच्चे आँखें , ये क्या की इन्हें ए बी सी डी सिखा दें | 
 बचेंगे कहाँ खेत खलिहान पशुधन , अगर गाँव में भी शहर हम बसा दें | 
 ये बाज़ार की साजिशें हैं संभलना , वो चाहें तो गाँधी को पैकेट बना दें | 
 चुनावों की आहट है वादों की झीसी , छली बादलों को आईना दिखा दें | 
 हैं अब भी कलम के कबीर और त्रिलोचन , प्रकाशित नहीं हैं मगर ये बता दें | 
 अहम हो गया धन हरेक क्षेत्र में ही , चलो हम भी साईं को सोना चढ़ा दें | 
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 (श्री शेषधर तिवारी जी) खुदा से मिली जो कुछ उसका सिला दें चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बना दें 
 न समझेगा नादान मेरी मुहब्बत जताना जरूरी है अब, तो जता दें 
 जरूरी है खुद झाँक लें हम गिरेबां कहीं कब्ल दुश्मन न इसको दिखा दें 
 रहे हैं तुम्हारे रहेंगे हमेशा कि जब तक न तुमको मुहब्बत सिखा दें 
 हमें तो समझ आ गया है इशारा चलो मिल के दुनिया नई इक बसा दें ----------------------------------------------------- (श्री सुरिंदर रत्ती जी) चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें, बुझे प्यार के शोले हम फिर जला दें 
 पराये सगे बने निभाई है दोस्ती, दिया दर्द अपनों ने हर पल सज़ा दें 
 है दीवार ऊंची अना की जहां में, किसी भी तरीके से दिल से गिरा दें 
 गुज़र जायेगा एक दिन सख्त लम्हा, बची ज़िन्दगी में ग़मों को भुला दें 
 लगी आग दोनों तरफ एक जैसी, पसोपेश में बेचैन प्रेमी बता दें 
 मिले जब से तुम राह आसां बनी है, नहीं कम फरिश्ते से "रत्ती" बता दें ----------------------------------------------------- (श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी ) (१) जहां में नया इक जहां हम बसादें चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बनादें 
 बड़ी क़ीमती है हमारी मुहब्बत तिज़ोरी में दिल की इसे आसरा दें 
 छिड़कते हैं जां , आप पर हम हैं मरते कहो तो अभी जान दे’कर दिखादें 
 सिवा आपके , कुछ नहीं चाहते हम कहो तो जहां को , ख़ुदा को भुलादें 
 बहुत ख़ुद को रोका ; करें अब तो दिल की किसी दिन , कहीं पर , कोई गुल खिलादें 
 है लोगों की आदत हमेशा ही ऐसी कहीं ये लगादें , कहीं ये बुझादें 
 जो नफ़रत ही बोते रहे आज तक ; वो न ज़्यादा इसे खाद-पानी-हवा दें 
 जो चाहें करें वो : करेंगे वफ़ा हम किताबों को हम ही कोई फ़ल्सफ़ा दें 
 जहां देख’ राजेन्द्र रब से यूं बोले– नई पीढ़ियों को जहां ख़ुशनुमा दें ! (२) किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें सभी एक हैं ; नाम क्या अलहदा दें 
 फ़रेबो-दग़ा मक्र मतलबपरस्ती यही सब जहां है तो तीली लगादें 
 कहां खो गए लोग कहते थे जो यूं- ‘चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बनादें’ 
 तसल्ली सुकूं चैन कुछ भी नहीं है कहां सर झुकादें … कहां सर कटादें 
 नहीं हमको आता नज़र कोई काबिल किसी में हो कूव्वत ; उसे ग़म सुनादें 
 न रोने से फ़ुरसत मिलेगी हमें यूं हो गर दीद उनकी कभी , …मुस्कुरादें 
 खड़े हम लिये’ राख इंसानियत की कोई पाक गंगा मिले तो बहादें 
 चले आज राजेन्द्र फ़ानी जहां से हो मिलना कभी ; हमको दिल से सदा दें ---------------------------------------------------- (श्री तपन दुबे जी) नफरतो कि ये आग अब हम बुझा दे चलो जिन्दकी को मोहब्बत बना दे 
 बड़ी हो चुकी समझदारी की बाते अरे कोई आके मुझे बच्चा बना दे 
 चलो आज मंदिर ना पहुचे तो क्या किसी भूखे बच्चे को खाना खिला दे 
 समन्दर में रहने वाले आदमी ने कहा मै प्यासा हूँ मुझे कोई पानी पिला दे 
 ये दोलत,ये शोहरत,ये खुशिया,ये आराम अरे ख्वाब तोड़ मेरा मुझे अब जगा दे 
 कैद रखता हूँ अपने ख्यालो को अक्सर सोचा आज इनको आसमानों में उड़ा दे ----------------------------------------------------- (श्री सतीश मापतपुरी जी) दिलों की वो तल्खी जो हमने हैं पाले, चलो आज उनको मिलकर भुला दें. 
 पलकों पे सपने जो सजते थे पहले, उन्हीं ख्वाब को हम फिर से सजा दें. 
 हमारी सुनो और अपनी सुनाओ, बातों का सिलसिला फिर से चला दें. 
 क्या सोचती हो - क्यों सोचती हो? चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें. 
 कदम तुम बढ़ाओ-कदम हम बढ़ाएं, चलो इस सफ़र को फिर हमसफ़र बना दें. 
 नभ को निहारो -दिल इसका देखो, चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें. 
 क्यों ना इसे हम मुक़द्दर बना लें. चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें. -------------------------------------------------- (श्री वीनस केसरी जी) मेरी हर खता की मुकम्मल सज़ा दें मगर इल्तिज़ा है, अभी फैसला दें 
 वो मेरे भले की न सोचें, तो बेहतर अगर दिल करे तो, उजाड़े, मिटा दें 
 ब-कद्रे जरूरत* मिला है सभी को संजोयें - बढ़ा लें,.... लुटाएं - उड़ा दें (ब-कद्रे जरूरत = जितना जरूरत हो उतना) 
 मुहब्बत - मुहब्बत - मुहब्बत - मुहब्बत चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बना दें ----------------------------------------------------- (श्री राज शर्मा लाली जी) जहर को जरा जिंदगी से भगा दे चलो जिन्दगी को मोहब्बत बना दे । 
 ठिकाना हमारा न तेरे बिन कहीं 
 कहीं तो हमें भी जरा सी जगा दे । 
 हजारों तुम्हे तो मिले इश्क वाले चलो आज आशिक तुमको दिखा दे । 
 खुद दिल तुम्हें दे इस तरह हम कहीं तुम मुझे हम तुझे खुदा ही बना दे । 
 इस तरह बिता ली बिन तुम ए सनम जी हम खुद को मिटा दे ख़ुशी से दुआ दे 
 न कहना किसी को दुःख दिलों का 'लाली; खुदी की नजर में न खुद को गिरा दे । --------------------------------------------------- (श्री नवीन चतुर्वेदी जी)कहो तो ज़मीं पे सितारे सजा दें तुम्हारे लिए तो ज़खीरे लुटा दें ! वजीरों को चमचों से बचाना पड़ेगा भला अब उनको और क्या मशवरा दें ! वो, जिनकी नज़र में है ख्वाब-ए-तरक्की अभी से ही बच्चों को पीसी दिला दें ! हमें टैक्स भरने में दिक्कत नहीं है वो खाता-बही पारदर्शी बना दें ! किसी अजनबी की दुआयों में आकर चलो जिंदगी को मोहब्बत बना दें ! ------------------------------------------------- (श्री राणा प्रताप सिंह जी) सभी खार नफ़रत के चुनकर हटा दें चमन में मुहब्बत के बूटे खिला दें 
 बुलंदी पे जो हैं वो इतना करें बस थके हारों को भी ज़रा हौसला दें 
 मेरे कतरे कतरे पे हैं वो ही काबिज बता इससे ज्यादा उन्हें और क्या दें 
 हवाओं का रुख मोड दूंगा यक़ीनन अगर आप इक लट लबों पर गिरा दें 
 खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें 
 लगाते हैं जो कीमतें आर पी की वो बिकता नहीं है उन्हें ये बता दें ----------------------------------------------------- (श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह) किसी माँग सूनी में तारे सजा दें चलो जिंदगी को मुहब्बत बना दें 
 न दिल रेत का है न तू हर्फ़ कोई जिसे आँसुओं की लहर से मिटा दें 
 बहुत पूछती है ये तेरा पता, पर, छुपाया जो खुद से, हवा को बता दें? 
 यही इन्तेहाँ थी मुहब्बत की जानम तुम्हारे लिए ही तुम्हीं को दगा दें 
 मरे रिश्ते सड़ने लगें उससे पहले चलो वक्त की राख से हम दबा दें 
 जहाँ खिल न पाया कभी फूल कोई बहारों को अब उस चमन का पता दें | 
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Thanks for the appreciation Raj sahib
लाजवाब मुशायरा! सब के शेर दिल को छूते हुये।
आभार निर्मला कपिला जी !
आपका बहुत बहुत धन्यवाद रत्ती साहिब !
तरही मुशायरे में शामिल ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं !
 कई शेर तो सीधे दिल में उतर गए !
 इतने बेहतरीन आयोजन के लिए ओ बी ओ के संचालक और इसके सदस्य बधाई के पात्र हैं !
 आभार !
बहुत बहुत आभार !
आयोजन के सभी ग़ज़लों को इस करीने से व्यवस्थित देख कर बहुत प्रसन्नता हुयी है.
साधु-साधु.
आदरणीय सौरभ भाई जी, दिल से आभारी हूँ आपका !
शुक्रिया आराधना जी !
बेहतरीन शायरों की बेहतरीन ग़ज़लों का बेहतरीन संकलन
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