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प्रयास (लघुकथा)

"मधु ! पिता जी का खाना भेज दिया ?"
"हाँ ! बाबा हाँ ! रोज नियम से भेज देती हूँ।" रविवार रमेश स्वयं ही टिफिन लेकर चला जाता। उस दिन बाप -बेटे पुश्तैनी मकान में घण्टों बातें करते और शाम को घर लौटते समय पिता जी रमेश को हमेशा की तरह टोकते:
"बेटा ! बहु-बच्चों का ख्याल रखना।"
आज मधु की छोटी बहन-जीजा आये हुए, देखकर रमेश ने मधु को बिना कुछ बताये टिफिन सेंटर से खाना भर कर भिजवा दिया। मधु ने भी खाना भिजवा दिया। पिता जी की खुशियों का ठिकाना न था। आज रमेश प्रसन्नचित होकर घर पहुँचा तो मधु अपनी बहन से कह रही थी:
"रोज खाना भेजने का मजबूरी है। वरना बाबूजी यहाँ ही आ धमके | तो मेरा जीवन एक माह में ही नरक बन जाये। बड़े प्रयास से इस बंगले के कागजात रमेश ने अपने नाम करवा रहे है। इसलिए यह प्रयास रहता है कि खाना बन्द न हो।"

विजय जोशी 'शीतांशु'
महेश्वर जिला खरगोन म.प्र.
रचना मौलिक व अप्रकाशित है।

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Comment by Neeta Saini on October 19, 2015 at 2:09pm
क्या होता जा रहा है हमारे आधुनिक समाज को बूढ़े माता पिता दो वक़्त की रोटी और थोडा सा प्यार व देखभाल ही तो चाहते है हमसे ये क्यों भूल जाते है हम कि आज अपने बच्चों को हम जिस कठिनाई से पाल रहे है कभी हमारे माता पिता ने भी हमे ऐसे ही पाला था । सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई आपको आदरणीय विजय जोशी जी
Comment by Nita Kasar on October 19, 2015 at 12:58pm
कितनी ओंछी सोच बेटे बहू की,पिता की ख़ुशी की वजह तो यही है उनका ख़्याल रखा जा रहा है सब कुछ लुटाकर भी कितना सहते है वे बधाई आपको आद०विजय जोशी जी ।
Comment by Vijay Joshi on October 19, 2015 at 11:02am
आदरणीय उस्मानी जी आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आभार।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2015 at 10:25pm
बहुत बारीकी से समस्या पर नज़र डालते हुए आज के बुज़ुर्गों की कई पीड़ाओं में से एक भोजन संबंधी पर लेखक ने प्रकाश डाला है।बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय विजय जोशी 'शीतांशु' जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 18, 2015 at 7:31pm

अच्छा मैसेज है .

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