For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  • हे री ! चंचल

----------------

जुल्फ है कारे मोती झरते

रतनारे मृगनयनी नैन

हंस नैन हैं गोरिया मेरे

'मोती ' पी पाते हैं चैन

आँखें बंद किये झरने मैं

पपीहा को बस 'स्वाति' चैन

लोल कपोल गाल ग्रीवा से

कँवल फिसलता नाभि मेह

पूरनमासी चाँद चांदनी

जुगनू मै ताकूँ दिन रैन

धूप सुनहरी इन्द्रधनुष तू

धरती नभ चहुँ दिशि में फ़ैल

मोह रही मायावी बन रति

कामदेव जिह्वा ना बैन

डोल रही मन 'मोरनी' बन के

'दीप' शिखा हिय काहे रैन

टिप-टप  जल बूंदों की धारा

मस्तक हिम अम्बर जिमि हेम

क्रीडा रत बदली ज्यों नागिन

दामिनि हिय छलनी चित नैन

कम्पित अधर शहद मृदु बैन -

चरावत सचराचर दिन रैन

सात सुरों संग नृत्य भैरवी

तड़पावत क्यों भावत नैन ?

हे री ! चंचल शोख विषामृत

डूब रहा , ना पढ़ आवत तोरे नैन !

---------------------------------------

"मौलिक व अप्रकाशित"

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५

11-11.48 P.M.

26.08.2013

कुल्लू हिमाचल 

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 6:49pm

आदरणीय सौरभ भ्राता श्री आप का सुझाव सर आँखों पर कोशिश होगी गीत हो या गेय हो तो आनंद और आये ये बात तो है समयाभाव वश जो एक बार शीघ्रता में लिख गए वही रह जाता है फिर चिंतन मनन नहीं हो पाता
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 6:44pm

प्रिय पवन जी रचना में आप को मिठास और सुख मिला लिखना सार्थक रहा अपना प्रोत्साहन यूं ही बनाये रहे स्वागत है
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 6:43pm

प्रिय गिरिराज भाई रचना आप के मन को भायी और आप से सराहना मिली ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 6:42pm

आदरणीया महिमा जी आभार आप का प्रोस्त्साहन हेतु हम बस आप से युवा मित्रो से ही तो सीखते हैं अपना प्रोत्साहन ऐसे ही बनाये रखें प्रेम उपजता रहेगा समाज में
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 6:40pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी हार्दिक आभार ये श्रृंगार रस की रचना आप के मन को छू सकी सुन ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2014 at 6:39pm

प्रिय जवाहर भाई स्नेह के लिए आभार स्नेह आप का यूं ही बरसता रहे तो कुछ श्रृंगार रस उपजता ही रहेगा
आभार
भ्रमर ५

Comment by Pawan Kumar on August 26, 2014 at 5:53pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....
श्रंगार रस कि मिठास से सराबोर...
सादर बधाई स्वीकारें...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2014 at 8:40pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , प्रेम पूर्ण रचना के इए बधाई |

Comment by MAHIMA SHREE on August 25, 2014 at 8:10pm

आदरणीय भ्रमर सर बहुत दिनों के बाद आपकी कोई रचना पढ़ रही हूँ ... बहुत-२ हार्दिक बधाई .हर बार .इतनी प्रेम पगी रचनाएं कैसे लिखते हैं .. हमारे वश की तो बात नहीं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2014 at 4:14pm

शृंगार रस में भीगी ऐसी रचनाओं को गीत के शिल्प में पढ़ा जाना अधिक तोषदायी होता है. अन्यथा ये ललित-प्रधान वाक्य बन कर रहा जाते हैं.

प्रयास के लिए धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service