For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ठिठुरती उँगलियाँ

ठिठुरती उँगलियाँ 

ठिठुरती काँपती उँगलियाँ  

तैयार नहीं छूने को कागज़ कलम

कैसे लिखू अब कविता मैं

बिन कागज़ बिन कलम

भाव मेरे सब घुल रहे हैं

गरम चाय की प्याली में

निकले कंठ से स्वर भी कैसे

जाम लग गया ,कंठ नली में

धूप भी किसी मज़दूरन सी

 थकी हारी सी आती है 

कभी कोहरे की चादर ओढे

गुमसुम सी सो जाती है 

सुबह सवेरे ओस कणों से

भीगी रहती धरती सारी

शायद, रात कहर से आहत होकर

रोती होगी धरती प्यारी

रातें भी तो .जबरन बिन बुलाए

मेहमान सी दुख दाई है

ठिठक गया ,मानो जग सारा

शिथिलता सब तरफ छाई है

क्यों नाराज़ हुआ है

हम से ये मौसम

कैसे लिखू अब कविता मैं

बिन कागज़ बिन कलम

 

******************

महेश्वरी कनेरी

मौलिक..एवं अप्रकाशित

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:03pm

आदरणीया, यह आपकी कोई पहली रचना है जो मैं दख रहा हूँ. आपकी प्रस्तुतियों की गीतात्मकता आशान्वित करती है. सतत प्रयासरत रहें. उससे पहले पटल पर रेगुलर रहें. बहुत कुछ सार्थक होगा.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 1, 2014 at 5:32pm

जीवन की विषमताओं के चिर संगी मौसम के अवयव भी तदरूप अपने समभाव ही लगते हैं.. इसे खूबसूरत बिम्ब मिले हैं 

और इतना उदास भावातिरेक शब्द रूप में ढले भी तो कैसे ?

सुन्दर अभुव्यक्ति है आदरणीया माहेश्वरी जी 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 1:33pm

सुन्दर भाव पिरोए हैं। बधाई, आदरणीया महेश्वरी जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 8:33pm

आदरणीया , बहुत सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ॥

कभी कोहरे की चादर ओढे

गुमसुम सी सो जाती है 

सुबह सवेरे ओस कणों से

भीगी रहती धरती सारी

शायद, रात कहर से आहत होकर

रोती होगी धरती प्यारी ------------ ये पंक्तियाँ खास लगीं , हार्दिक बधाई ॥

Comment by annapurna bajpai on December 30, 2013 at 7:17pm

सुंदर रचना बहुत बधाई , आपको । 

Comment by Sonam Saini on December 30, 2013 at 12:45pm

सर्दी पर अच्छा लिखा है आपने मैम, सच कहा सर्दी में उँगलियाँ भी लिखने को तैयार नही होती ! बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के मैम…

Comment by coontee mukerji on December 29, 2013 at 6:33pm

सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई.सादर

Comment by annapurna bajpai on December 28, 2013 at 7:49pm

आदरणीया माहेश्वरी जी बड़ी ही सुंदर रचना , ठंड को परिभाषित करती हुई , बधाई आपको इस रचना हेतु । 

Comment by Shyam Narain Verma on December 28, 2013 at 5:36pm
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service