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काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता

 

 काश कोई होता जिसपे मेरा अधिकार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

जिसके बिन मेरा जीवन पतझड़ सा ही सूना है!

पास है मेरे सबकुछ पर वो नहीं तो फिर क्या है!

पतझड़ से सूने जीवन में बनकर बहार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

प्रेम कहानी, गीत-गज़ल मन को रास नहीं आते!

प्रेम-प्रणय, श्रींगार-भाव मन को अतिशय तड़पाते!

बस मेरी खातिर ही जिसका सारा श्रींगार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

प्रिया व् प्रेमी की बातें दिल पर तीर चलाती हैं!

उसपर सुकोमल प्रीत वो पीड़ा और बढाती है!

जिसके होठों पर हरइक पल मेरा पुकार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

 

जब खुद पर से भी मेरा विश्वाश कभी खो जाए!

जब मेरी सब हिम्मत गहरी नींद में सो जाए!

जब जीवन की राह में निराश कभी मै रुक जाऊं!

जब संघर्षों के आगे कायर सा मै झुक जाऊं!

ऐसे क्षण में भी जिसको मुझपर ऐतवार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

   

                                                                                           - पियूष द्विवेदी भारत’                   

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 31, 2012 at 1:00pm

SANDEEP KUMAR PATEL

बारम्बार धन्यवाद.........

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 9:30am

ऐसे क्षण में भी जिसको मुझपर ऐतवार होता!

काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!

बहुत सुन्दर रचना बधाई हो
कुछ कमियाँ है जो भाई विन्धेय्श्वरी जी ने पूर्व में अवगत करा दिया है

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 7:13am

Naval Kishor Soni

धन्यवाद........!

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 7:12am

विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी

बधाई हेतु धन्यवाद! हम जब भी कोई रचना करते हैं, तो अपनी तरफ से इस बात का व्यापक प्रयास करते हैं कि काव्य क कला पक्ष भी उतना ही उत्तम हो जितना कि भाव पक्ष, परन्तु मात्रात्मक विवशताओं के कारण सब स्वेच्छानुसार से नही हो पाता! जिस वर्तमान और भूत के संयोजन की बात आपने लिखी है, मेरे अनुसार वहां त्रुटी नही है, क्योंकि इस तरह की शब्दावली काव्य की, विशेषतः मात्रात्मक काव्य की विवशता है! टंकण सम्बन्धी त्रुटियों के विषय में मुझे कोई अनुमान नही है, संभव हो तो विदित कराएं! पुनः धन्यवाद!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 6:55pm
आदरणीय पियूष जी उत्तम गीत रचना के लिए बधाई।लेकिन प्रथम पद में वर्तमान के साथ भूत का संयोजन सालता है।टंकण सम्बंधी कुछ त्रुटियां भी हैं।
फिरहाल रचना भाव के स्तर पर मुग्ध करती है एकबार पुन: बधाई।
Comment by Naval Kishor Soni on August 29, 2012 at 1:31pm

जब संघर्षों के आगे कायर सा मै झुक जाऊं!

ऐसे क्षण में भी जिसको मुझपर ऐतवार होता!-----wah bhut khub.

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