For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल::; मनोज अहसास

नज़र में उलझन भरी हुई है, तमाम रस्ते उजड़ गये हैं ।
सँभलना जितना भी हमने चाहा, हम उतने ज्यादा बुरे गिरे हैं।

हमारे जैसा उदास कोई, हमें कहीं भी नहीं मिला पर,
हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं।

कभी नहीं वो कहेंगे हमसे, के उनके दिल में है प्यार अब भी,
सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं।

ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू ,जो बस गयी है मेरी रगों में,
ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें ग़म भी सजे हुए हैं।

कहाँ हो तुम दो जहां के मालिक, हमारे दिल में अंधेरा करके।
पुकार कर तेरा नाम कब से हमारे नाले भी थक चुके हैं।

यहाँ से आगे का रास्ता अब ,कटेगा कैसे ये फिक्र है बस।
खुदी की बेखुद तलाश में हम ,ख़ुदा से अपने बिछड़ गये हैं।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on May 10, 2022 at 10:27pm

आदरणीय मुसाफिर साहब ग़ज़ल पर उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया

सादर

Comment by मनोज अहसास on May 10, 2022 at 10:26pm

आदरणीय समर कबीर साहब ग़ज़ल पर महत्वपूर्ण इस्लाह देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया मैं आपकी बात मानने का बहुत प्रयास करता हूं लेकिन मेरे अंदर कुछ कमियां ऐसी हैं जिन को सुधारने में वक्त लगेगा आप कृपया करके मुझ पर ध्यान देते रहें क्योंकि ऐसे एक दो लोग ही हैं जिनसे मुझे सीखने को मिल रहा है और उन में आपका स्थान पहले नंबर पर है सादर

Comment by मनोज अहसास on May 10, 2022 at 10:25pm

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब बहुत-बहुत शुक्रिया सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2022 at 9:33pm

आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। भाई समर जी की बात का संज्ञान लें। 

Comment by Samar kabeer on May 1, 2022 at 3:37pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'सँभलना जितना भी हमने चाहा, हम उतने ज्यादा बुरे गिरे हैं'

इस मिसरे में 'बुरे गिरे हैं' ठीक नहीं लग रहा है,दूसरी बात ग़ज़ल में 'ज़ियादा' शब्द को 122 पर ही लेना उचित होता है,सुधार का प्रयास करें ।

"कभी नहीं वो कहेंगे हमसे, के उनके दिल में है प्यार अब भी'

इस मिसरे में 'के' को "कि" करना उचित होगा ।

'ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें ग़म भी सजे हुए हैं'

इस मिसरे में 'क्योंकि' पर बह्र टूट रही है,देखें ।

'कहाँ हो तुम दो जहां के मालिक, हमारे दिल में अंधेरा करके।
पुकार कर तेरा नाम कब से हमारे नाले भी थक चुके हैं'

इस शैर में शुतर गुरबा दोष है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-

'कहाँ है तू दो जहाँ के मालिक..'

एक बात ये कि ये सीखने सिखाने का मंच है इसलिए ग़ज़ल के साथ अरकान ज़रूर लिखा करें,दूसरी बात ये कि उर्दू शब्दों में कहीं आप नुक़्ते लगाते हैं कहीं नहीं लगाते,इस तरफ़ ध्यान दें,अब ये न कहना कि व्यस्तता इतनी है कि... अगर ये कहेंगे तो मैं कहूँगा कि रिटायर होने तक इन्तिज़ार करें फिर लेखन करना ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 29, 2022 at 12:02am

आदाब। बेहतरीन विचारोत्तेजक। हार्दिक बधाई आदरणीय मनोज अहसास साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service