For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं दामिनी हूँ

आप की जैसी एक जिंदगानी हूँ
जीना था मुझे आप की तरह
रोज़ सवेरे उठकर ऑफिस जाना था
एक छोटा सा घर बनाना था।

किसीकी बहन तो थी ही
किसीकी जननी भी कहलानी थी
माँ मुझे जीना था।

आज जल गया मेरा सवेरा
टूट गये सारे अरमान मेरे
जा रही मैं इस दुनिया को छोड़ कर
मगर माँ मुझे जीना था
रोज़ सवेरे आप का पैर छूना था।

उजाड़ गयी दुनिया मेरी
पर एक ख्वाब मुझे बुनना था
मगर माँ मुझे जीना था।

कैसे कहूँ, जो अब मैं चली गयी
लोगों की दिल में चोट बनकर रह गयी
इस चोट को दुनिया वालों, खुरेदना मत
मैं जा रही, पर ख्याल आप की
माँ बहन का रखना।

जब भी लगे चोट उनको
तो मुझे याद कर लेना,
मैं दामिनी हूँ-
लोगों, मुझे दिल में बसाए रखना,
मैं आज जो जीत गयी
ये जीत आप की बहन बेटी की होगी
मुझे जीत जाने दो
मुझे जीने दो।

माँ मुझे जीना था।

....Lata Tej.....
९/१३/१३

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 997

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 22, 2013 at 9:42am

दामिनी टो मरकर भी जीवित है, पर अब कोई और अबला पर यह कहर ना टूटे | समाज में सभी को प्रभु सद्बुद्धि दे 

सुन्दर भाव रचना के लिए बधाई आदरणीया लता तेज जी 

Comment by Lata tejeswar on November 21, 2013 at 10:34am

Dhanyabaad गीतिका 'वेदिका' ji aap ki sujhav bahut hi sarahniya hai ... koshish karungi ki aap ki salah par khari utarsakun

Comment by वेदिका on October 8, 2013 at 5:47pm

भाव पक्ष: मजबूत और संवेदनशील कथ्य

शिल्प पक्ष: संवेदना के साथ सरसता भी चाहिए|

नेक विषय पर कलम चलाने हेतु बधाई !!

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 1:08pm

 धन्यबाद  Baidya Nath 'सारथी' ji sadar

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 1:07pm

  Dr.Prachi Singhji aap ki अधूरी कहानी को पूरा कीजिये..... बहुत ही सुन्दर कहानी है ...और इस कहानी को अरुन शर्मा 'अनन्तji, annapurna bajpaiji, जिस तरह से आगे बढ़ाया है काबिले तारीफ है… बहुत बहुत बधाई ..अरुन शर्मा 'अनन्तji, annapurna bajpaiji,

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 12:56pm

बृजेश नीरज ji, Dr.Prachi Singh ji, माफ़ी चाहूंगी, मैं स्वतः हिंदी न होने हेतु व्याकरण में त्रुटियाँ दिखाई देती है , जैसे की मैं यहाँ आप जैसी महान साहित्य रचना कारों से कुछ ज्ञान प्राप्त करने आई हूँ,  इसलिए इन त्रुटीयों को माफ़ करते हुए मुझे मेरी गलतियों का एहसास देने हेतु बहुत बहुत आभार हूँ। आगे भी स्नेह बने रखे। सादर।

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 12:51pm

 आदरणीय  Laxman Prasad Ladiwala ji, annapurna bajpaiji, अरुन शर्मा 'अनन्तji, जितेन्द्र 'गीत'ji, Abhinav Arunji, बृजेश नीरज ji, Dr.Prachi Singh ji रचना को सरहाने के हेतु बहुत बहुत धन्यबाद...कुछ दिन से मेरी अनुपस्थिति के कारण उत्तर प्रत्युत्तर में देरी हुई इस हेतु माफ़ी चाहूंगी। सबकी आशीष और स्नेह के बनी रहे, सादर .

Comment by Saarthi Baidyanath on October 8, 2013 at 12:45pm

संवेदनात्मक अभिव्यक्ति ... बढ़िया ::)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 17, 2013 at 11:54am

ज़िंदगी की आस लगाए कोई और दामिनी दम ना तोड़ दे... इस पीढा को चिंता को अभिव्यक्त करती मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएँ 

कुछ व्याकरण व टंकण त्रुटियाँ रह गयी हैं..उन्हें सही कर लें 

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 8:21pm

दामिनी के दर्द कहाँ भुलाया जा सकता है. ये ऐसी चोट है समाज पर जिसकी तीस बरसों तक बनी रहेगी.

दामिनी की पीड़ा को बहुत अच्छे से सब्द मिले हैं. आपको हार्दिक बधाई.

एक निवेदन जरूर करना चाहूँगा. ये मेरे विचार हैं, हो सकता है की आप सहमत न हों. लेकिन कविता करते समय अपनी भावनाओं के प्रवाह को नियंत्रित कर उन्हें शब्दों में पिरोना ही कवी या रचनाकार की कला है. आपकी ये रचना कविता कम एक स्टेटमेंट अधिक हो गयी है.

खैर, उस पीड़ा को शब्द देने के लिए आपको एक बार फिर बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"उड़ने की चाह आदत भी बन जाती है।और जिन्हें उड़ना आता हो,उनके बारे में कहना ही क्या? पालो, खुद में…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service