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अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास

221  2121  1221  212

उस बेमिसाल दौर का दिल से मलाल कर
जब फैसले हो जाते थे सिक्का उछाल कर

तेरे ख्याल में हूं तू मेरा ख्याल कर
मैं तेरी जिंदगी हूं मेरी देखभाल कर

वो दे रहा है देर से पानी उबालकर
हँस हँस के पी रहे हैं सभी ढाल ढाल कर

उसमें कमी न ढूंढ न कोई सवाल कर
तू भी सलाम कर कोई जुमला उछाल कर

है तीरगी जो अपना मुकद्दर तो क्या हुआ
इल्मों अदब से सारे जहां में जलाल कर *

यह हादसा तो जिंदगी की आम बात है
बूढ़े सभी हो जाते हैं बच्चों को पाल कर

आराम आ गया तो भुला सकता हूं तुझे
कैसे भी कर मगर मेरा जीना मुहाल कर

कोई भी वक्त एक सा रहता नहीं कभी
अपने खुदा की राह में खुद को जमाल कर **

तेरे वजूद में ही तो खिदमत का दम नहीं
यादों में उसकी डूबकर आंखें तो लाल कर

वाकिफ तेरे निजाम से मैं कितना भी नहीं
कैसे कहूं मेरे खुदा कोई कमाल कर

गिनती कभी रईसों में होगी मेरी जरूर
रक्खे हैं तेरे खत कई अब तक संभाल कर

तू खूबियों में डूब कर तनकीद को न भूल
जब पद बड़ा मिला है तो दिल भी विशाल कर

तेरी सदा से आह से वो दूर है बहुत
'अहसास' रख दे चाहे कलेजा निकालकर

* तेज प्रकाश। ** सुंदर

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on January 29, 2020 at 2:35pm

//इस शेयर में मैंने जलाल का अर्थ तेज प्रकाश लिया है यह मैंने एक शब्दकोश में पढ़ा था बाकी आप बताने की कृपा करें//

"जलाल" का अर्थ होता है,ये अरबी भाषा का शब्द है,अर्थ,बुज़ुर्गी, अज़मत,बड़ाई, ग़ुस्सा, शान-ओ-शौकत,जोश ।

'इल्मों अदब से सारे जहां में जलाल कर'

इस मिसरे में रदीफ़ के साथ इसका वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं ।

'अपने खुदा की राह में खुद को जमाल कर'

'जमाल' अरबी भाषा का शब्द है,इसका अर्थ है,हुस्न,जोबन,रूप,ख़ूबसूरती ।

अब इन अर्थों के साथ आप ख़ुद ग़ौर करें ।

Comment by मनोज अहसास on January 28, 2020 at 4:51pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार इस शेयर में मैंने जलाल का अर्थ तेज प्रकाश लिया है यह मैंने एक शब्दकोश में पढ़ा था बाकी आप बताने की कृपा करें मैंने आप को फोन भी किया था पर आपका फोन स्विच ऑफ आ रहा है जमाल वाले शेर के बारे में आपसे फोन पर ही बात करूंगा आशीर्वाद बनाए रखें आपके बिना हमारी गजलें अधूरी हैं

Comment by मनोज अहसास on January 28, 2020 at 4:50pm

आदरणीय रवि भसीन शाहिद साहब आपका बहुत-बहुत शुक्रिया दरअसल जो बातें आपने बताई हैं वह बातें समर कबीर साहब मुझे बहुत बार बता चुके हैं पर क्योंकि मैं उर्दू जानता नहीं हूं इसलिए इन बातों का पालन करने से चूक जाता हूं आगे से पूरा पूरा ध्यान रखूंगा साथ रहने के लिए शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on January 28, 2020 at 4:00pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'इल्मों अदब से सारे जहां में जलाल कर'

इस मिसरे में 'इल्मों' को "इल्म-ओ-लिखें,और सानी में 'जलाल' का क्या अर्थ लिया है,बताने का कष्ट करें ।

'अपने खुदा की राह में खुद को जमाल कर'

इस मिसरे में क़ाफ़िया भर्ती का है ।

आपको जो बातें आज जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी ने विस्तार से बताई हैं,वो मैं आपको कई बार बता चुका हूँ, उनकी बातों का संज्ञान लें ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on January 22, 2020 at 8:39pm

मनोज भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, आपको बधाई। ग़ज़ल बहर में है, लेकिन अगर आप नुक़्ते का भी इस्तेमाल करें तो spelling भी ठीक हो जाएंगे। 

फैसले = phaisle

फ़ैसले = faisle

जिंदगी = jindagee

ज़िंदगी = zindagee

मुकद्दर = mukaddar 

मुक़द्दर = muqaddar

निजाम = nijaam

निज़ाम = nizaam

इनके इलावा ख़्याल, ख़ुद, ख़ुदा, ख़िदमत, ख़त, ख़ूबी - ये सारे लफ़्ज़ों में 'ख' के नीचे नुक़्ता (.) लगाया जाना चाहिए, क्यूंकि ये उर्दू में 'ख़े = خ' से लिखे जाते हैं, न कि 'ख = کھ' से

मैं ये बातें आपको इसलिए बता रहा हूँ क्यूंकि मुझे ये स्कूल में या कॉलेज में किसी ने नहीं बताई थीं। फिर जब उर्दू सीखी तो ये सब समझ आना शुरू हुआ। देखिये नुक़्ते से हर्फ़ की आवाज़ कैसे बदल जाती है:

क = कौन

क़ = क़ौम (guttural sound, produced in the back of the throat)

ख = खाना

ख़ = ख़ाना (जैसे कि 'मैख़ाना', guttural sound, produced in the back of the throat)

ग = गाल

ग़ = ग़ालिब (guttural sound, produced in the back of the throat)

फ = फूल ('ph' sound)

फ़ = फ़ायदा ('f' sound)

ज = जग ('j' sound)

ज़ = ज़हर ('z' sound)

आशा करता हूँ मैं आपको कुछ लाभ पहुंचा सका। शुभ कामनाएं।

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