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बच्चा ज्यों-ज्यों होता बडा

बच्चा ज्यों-ज्यों होता बड़ा
हँसता कभी रोता ज़रा
उँगली थामे दौड़ रहा वह
गिरता कभी होता खड़ा
देखें बचपन तो जी ललचाए
काश हम भी बच्चे बन जाएँ
अट्खेली से सबै लुभाए
हाथों में सुंदर-सा कड़ा
बचपन से यौवन प्रवेश में
चाहे फिर हो किसी वेष में
चंचल चितवन तरणताल में
प्रेम से सबका भरता घड़ा
जोश उमंगो के सागर में
बढता जाता नई राहों में
झुठे सच्चे अफसाने लेकर वो
अपनी ज़िद पर रहता अड़ा
जीवन के इस चक्रव्यूह में
कभी छाँव और कभी धूप में
चिंता के चिंतन स्वरूप में
प्रश्न मार्ग अवरुद्ध पड़ा
हम भी ख़ुश हैं वो भी ख़ुश है
बस लेकिन इतना सा दुख है
यौवन मद में चूर हुआ है
नित करता अपमान बड़ा
प्रदीप देवीशरन भट्ट-2001
मौलिक व अप्रकशित्

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Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 6, 2019 at 7:09pm

सुन्दर रचना 

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 5, 2019 at 6:04pm

शुक्रिया समर जी

Comment by Samar kabeer on August 4, 2019 at 10:34am

जनाब प्रदीप जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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