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नज़्म (इंसानियत का ख़ून )

(फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलुन )

बन गया है आज का इंसान हैवां दोस्तो |
पाक औरत का रहेगा कैसे दामां दोस्तो |
पेश आया था कभी दिल्ली में जैसा वाक़्या |
हो गया कठुआ ,रसाना में भी वैसा हादसा |
जिसको सुन कर हो रहे हैं जानवर दुनिया के ख़्वार |
कर दिया इंसान ने इंसानियत को शर्म सार |
यह नहीं है ख़्वाब कोई है हक़ीक़त दोस्तो |
आसिफ़ा है वह लुटी है जिसकी इज़्ज़त दोस्तो |
उम्र उस मासूम की थी सिर्फ़ लोगों आठ साल |
मुफ़लिसी थी घर में लेकिन था नहीं कोई मलाल |
बकरियां जंगल में लेकर वो चराने क्या गई |
उसके ऊपर बद नज़र वहशी दरिंदों की पड़ी |
कर भी क्या सकती थी वो मासूम रोने के सिवा |
ले गए जबरन दरिंदे उसको जंगल में उठा |
उसको देविस्थान के अंदर दरिंदों ने रखा |
मासिवा जंगल के कुछ भी पास में उसके न था |
उनसे करती ही रही मासूम रो रो कर गुहार |
वो मगर करते रहे इज़्ज़त को उसकी तार तार |
खेल उस जा ये घिनौना तीन दिन तक था चला |
बाद इसके वहशियों ने जुर्म ये क़सदन किया |
क़त्ल उस बेआबरू मासूम बच्ची का किया |
लाश को फिर उसकी जंगल के हवाले कर दिया |
जब से इंसानों ने की हैवानी हरकत गांव में |
सब की आँखों में नज़र आती है दहशत गांव में |
हर कोई ग़ुस्से में है बदली हुई है हर नज़र |
लेगी कब सरकार उन वहशी दरिंदों की ख़बर |
पूछती है हुक्मराने मुल्क से बस ये अवाम |
वहशियों के कारनामों पर लगेगी कब लगाम |
ऐसे ही क़ानून की है अब ज़रुरत दोस्तो |
जो करे भारत में औरत की हिफाज़त दोस्तो |
उनको चौराहे पे लटका के दो फांसी की सज़ा |
चाहते तस्दीक़ सब हैं जल्द हो ये फ़ैसला |

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by vijay nikore on April 19, 2018 at 3:49pm

उनसे करती ही रही मासूम रो रो कर गुहार |
वो मगर करते रहे इज़्ज़त को उसकी तार तार |.... अच्छा लिखा है

......................
क़त्ल उस बेआबरू मासूम बच्ची का किया |
लाश को फिर उसकी जंगल के हवाले कर दिया |
जब से इंसानों ने की हैवानी हरकत गांव में |
सब की आँखों में नज़र आती है दहशत गांव में | .....   उफ़्फ़्फ़्फ़
....................................................
पूछती है हुक्मराने मुल्क से बस ये अवाम |
वहशियों के कारनामों पर लगेगी कब लगाम |....  वाह !

.............
उनको चौराहे पे लटका के दो फांसी की सज़ा |
चाहते तस्दीक़ सब हैं जल्द हो ये फ़ैसला |             .....  सहमत 

नज़्म बहुत ही अच्छी बनी है, जनाब तस्दीक अहमद जी। बधाई।

Comment by Samar kabeer on April 19, 2018 at 3:22pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,बहुत ही मार्मिक और सच्ची नज़्म,आपने पूरी वारदात को बहुत सलीक़े से नज़्म किया है,हर दर्दमंद इंसान इस पर आब दीद्: है, लेकिन सरकार आज भी ख़ामोश है, हर तरफ़ ये अस्मत दरी होती रहेगी,और हुक्मरां ऐसे ही तमाशा देखते रहेंगे ।

भाई आपने इस हादिसे पर अपने क़लम से जो एहतिजाज रक़म किया है उसके लिए आपके शुक्रगुज़ार हैं ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 19, 2018 at 1:59pm
मुहतरमा नीलम साहिबा , नज़्म पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला
अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 19, 2018 at 1:57pm
जनाब हर्ष महाजन साहिब , नज़्म पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला
अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुकरिया |
Comment by Neelam Upadhyaya on April 19, 2018 at 1:06pm

आदरणीय तसदीक अहमद जी, बहुत ही बढ़िया रचना हुयी है ।

Comment by Harash Mahajan on April 19, 2018 at 9:51am

आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब ।

आपके सभु दुफिकरों के अहसास उम्दा रहे ।

"पूछती है हुक्मराने मुल्क से बस ये अवाम |
वहशियों के कारनामों पर लगेगी कब लगाम |
ऐसे ही क़ानून की है अब ज़रुरत दोस्तो |
जो करे भारत में औरत की हिफाज़त दोस्तो |
उनको चौराहे पे लटका के दो फांसी की सज़ा |
चाहते तस्दीक़ सब हैं जल्द हो ये फ़ैसला |"

सही कहा यही अंजाम दरकार है ।

खूब ।

सादर

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