२१२२ १२१२ २२
कोंचती है ये धूल कहता है
किस नफ़ासत से फूल कहता है
मख़मली ये लिबास चुभते हैं
रास्ते का बबूल कहता है
जिन्दगी से निबाह करती हूँ
आइना जब क़ुबूल कहता है
अपने दम पे मक़ाम हासिल कर
मुझसे मेरा उसूल कहता है
चाहो मंजिल तो आबले न गिनो
हर कदम पे रसूल कहता है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० हर्ष महाजन जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |
आद० संदीप कुमार जी आपको इतने समय बाद ओबीओ पर देख रही हूँ बहुत अच्छा लगा .आपने मेरी ग़ज़ल पर शिरकत की दाद दी आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |
आद० बलराम धाकर जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |
काफी दिनों बाद आना हुआ । बहुत ही सुंदर पेशकश आपकी आ0 राजेश कुमारी जी । दिली दाद वसूल पाइयेगा ।
सादर
आदरणीया राजेश कुमारी जी इस रचना पर बहुत बधाई आपको
बड़े दिनों के बाद आज मंच पर आया हूँ
पर आपकी ग़ज़ल पढ़ के मन खुश हो गया
दिली दाद हाजिर हैं आदरणीया ..................जिन्दाबाद
आदरणीया राजेश कुमारी जी, अशआर दर अशआर बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने। बहुत बहुत बधाई।
सादर।
आद० अजय तिवारी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
आद० लक्ष्मण धामी भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से शुक्रिया
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