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रकीबों को उठाया जा रहा है ।
किसी पर जुल्म ढाया जा रहा है ।।

मैं छोड़आया तुम्हारी सल्तनत को।
मगर चर्चा चलाया जा रहा है ।।

मुखौटे में मिले हैं यार सारे ।
नया चेहरा दिखाया जा रहा है।।

सुखनवर की किसी गंगा में देखा ।
नया सिक्का चलाया जा रहा है ।।

सही क्या है गलत क्या है ग़ज़ल में ।
नया कुछ इल्म लाया जा रहा है ।।

अदब से वास्ता जिसका नहीं था ।
उसे आलिम बताया जा रहा है ।।

सिकेंगी रोटियां अब खूब साहब ।
हमारा दिल जलाया जा रहा है ।।

--नावीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 13, 2017 at 9:00pm
वाह ख़ूब भाई जी वाह

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