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   चुग्गा

 

उस अज़नबी स्त्री की

मटकती पतली कमर पे

पालथी मारकर बैठा है

मेरा जिद्दी मन |

पिंजरे का बुढ़ा तोता

बाहर गिरी हरी मिर्च देख

है बहुत ही प्रसन्न  |

x x x x x x x  x

पसीना-पसीना पत्नी आती है

मुझपे झ्ल्ल्लाती है

रोती मुनिया बाँह में डाल

मिर्च उठाकर चली जाती है

x x x x x x x x  x

तोता मुझे और

मैं तोते को

देखता हूँ |

वो फड़फड़ा कर

पिंजरा हिलाता है |

और मैं झुंझला कर

बिटिया खिलाता हूँ |

 

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

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Comment

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Comment by somesh kumar on June 12, 2017 at 8:15am

हौसलाफजाई एवं  स्वीकृति के लिए शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ भाई |

Comment by Mohammed Arif on June 11, 2017 at 5:53pm
आदरणीय सोमेश जी आदाब, बेहतरीन प्रयास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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