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दुनिया कहती है, मैं ऐसा हूँ। दुनिया कहती है, मैं वैसा हूँ॥

दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

जेठ की दोपहरी
पसीने का एहसास,
ताम्र वर्ण की-
अतृप्त प्यास॥
तेरी काँख के गंध
जैसा हूँ॥


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

सही वक़्त, सही लोग
मिल नहीं पाए।
शब्द बिखरे रहे,
अर्थ मिल नहीं पाए॥
उनींदी रातों की,
सिलवटों जैसा हूँ॥


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

गीत होंठों को
छू कर चले जाते हैं।
दिवस, अमावस
हुए जाते हैं॥
शब्द-हीन गीतों के,
गायक जैसा हूँ॥


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

दुनिया की हाट में,
बाज़ार में।
इफ़रात रियायत है
कलुषित प्यार में॥
मुझे ये खींच नहीं पाते,
मैं जाने कैसा हूँ?


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

सीधे, इस जीवन में
चल नहीं पाया।
कभी दायें, तो-कभी
बाएँ, भरमाया॥
एक अनियमित से
उच्छ्वास जैसा हूँ॥


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

लोग कहते हैं,
मैं देर कर देता हूँ,
कहना हो कुछ, कुछ
और कह देता हूँ
खुद नहीं जानता
मैं कैसा हूँ॥


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

तुम्हें देखा तो,
सच नहीं कह पाया
झूठ ने भी, कतरा-
कतरा पिघलाया
तुम ही बताओ
कैसा हूँ॥


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

दुख मुझ से,
सहा न गया।
वक़्त ने समझाया
पर कहा न गया॥
दुख में निहित-
आस जैसा हूँ।


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

कुछ लोग मुझ पर
कृपा कर जाते हैं।
मुझसे साहस पाकर,
मेरी कमज़ोरियाँ
गिनाते हैं॥
गूंगे पर हुए-
उपहास जैसा हूँ।


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥

जो भी आता है,
मेरी स्लेट छीन लेता है,
मेरी इबारतों को मिटा,
अपनी कहानी लिख देता है॥
लगता है,
स्लेट जैसा हूँ।


दुनिया कहती है,
मैं ऐसा हूँ।
दुनिया कहती है,
मैं वैसा हूँ॥
तेरी काँख के गंध
जैसा हूँ॥

सादर,
सुधेन्दु ओझा

मौलिक तथा अप्रकाशित

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