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‘नया मुर्दा’ (लघु कथा 'राज')

 नदी का वो  घाट पर जहाँ दूर-दूर तक मुर्दों के जलने से मांस की सड़ांध फैली रहती थी साँस लेना भी दूभर होता था वहीँ थोड़ी ही दूरी पर एक झोंपड़ी ऐसी भी थी जो चिता की अग्नि से रोशन होती थी|

भैरो सिंह का पूरा परिवार उसमे रहता था दो छोटे छोटे बच्चे झोंपड़ी के बाहर रेत के घरोंदे बनाते हुए अक्सर दिखाई दे जाते थे |

दो दिन से घाट पर कोई चिता नहीं जली थी बाहर बच्चे खेलते-खेलते उचक कर राह देखते- देखते थक गए थे कि अचानक उनको राम नाम सत्य है की आवाजें सुनाई दी सुनते ही बच्चे ख़ुशी से उछल पड़े |

नन्हीं पूर्वी चहकती हुई भीतर भागी और बोली “पिताजी पिताजी  , नया मुर्दा आया है ..वाह अब मजा आयेगा.... सुनते ही परिवार में सभी की आँखें चमक उठी |

पूर्वी का पिता  तुरंत बाहर गया और मुर्दे को विधि विधान से जलाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी कुछ कपड़ों का गट्ठर थोड़ी दूर खड़ी पूर्वी को बुलाकर सौंप दिया गया जिसमे से एक-एक कपड़ा निकाल कर नन्ही पूर्वी देख रही थी और कुछ उदास सी हो गई थी फिर पूजा पाठ के बाद थोड़े से चावल आटा शक्कर पूर्वी व् उसके छोटे भाई को पकड़ा दिए गए |

मगर पूर्वी फिर भी उदास थी अपने पिताजी के पास जाकर बोली “इसके कपड़ों में तो कोई शाल भी नहीं मिली दादी को बहुत सर्दी लगती है| और दाल भी नहीं है आज क्या पकाएगी अम्मा”? पिताजी,अब दूसरा मुर्दा कब आयेगा"??

“तू बावली हो गई क्या? जा घर में जा” पिताजी के डांटते ही बच्चे घर की और भागे|

मुर्दे के परिवार वालों को अजीब सी नजरों से बच्चों को देखते हुए देखकर भैरो सिंह सकपकाता हुआ बोला - “बावले हैं जी ये बच्चे कुछ भी बोल देते हैं ... पर क्या करें साहब, ये भी सच है कि यहाँ चिता जलती है तभी वहाँ चूल्हा जलता है” |

                                           ------------

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by aman kumar on April 6, 2017 at 11:47am

चिता जलती है तभी वहाँ चूल्हा जलता है” मार्मिक सच्चाई ! 

आभार !!

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