For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,
 
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम

Views: 1525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rajendra Swarnkar on May 31, 2011 at 10:16pm
आदरणीय गणेश जी "बागी"जी
नमस्कार !

अच्छी ग़ज़ल कही है भाईजी !

यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी ग़ैर के कारण
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम
वाऽऽह ! क्या कहने है जनाब !

एक शे'र मुलाहिजा फ़रमाएं -
यहां गर हम नहीं आते , बहुत नुकसान में रहते
कहां हम आपसे मिलते ये मानो या न मानो तुम !
:)

बहुत बहुत बधाई !

राजेन्द्र स्वर्णकार
Comment by Dheeraj on May 30, 2011 at 12:07pm
क्या उम्दा ग़ज़ल लिखी है गणेश जी... बहुत ही असाधारण और सच्चाई से प्रेरित ग़ज़ल है. सच मे दिल की गहराई मे उतरने लायक ज़ज़्बात है

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 30, 2011 at 10:50am
धन्यवाद नीलम दीदी |
Comment by Neelam Upadhyaya on May 30, 2011 at 10:48am
bahut hi sunder rachna hai. 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 30, 2011 at 9:59am
आदरणीय हिरा लाल जी, सराहना हेतु धन्यवाद, स्नेह बनाये रखे |
Comment by HIRALAL KASHYAP on May 29, 2011 at 6:46pm
ATI SUNDER GANESH JEE


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 29, 2011 at 2:53pm

आदरणीय ब्रिजेश भईया, आपके अनुभवी नजर को नमन, आपने ग़ज़ल की आत्मा से साक्षात्कार कर अपनी भावनाओं को प्रस्तुत किया है, मैं सलाम करता हूँ | 

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 29, 2011 at 2:50pm
परम आदरणीय आचार्य जी, आपका आशीर्वाद पाना सदैव मेरे लिए धरोहर सा रहा है, आज पुनः मेरे प्रयास को आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ, मैं धन्य हुआ |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 29, 2011 at 2:48pm
अरुण भाई, हौसलाफजाई हेतु शुक्रिया |
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 29, 2011 at 2:22pm
 
ये मन की भावनाएं जो उतर कागज़ में आयीं है 
कोई सदमा लगा दिखता ये मानो या न मानो तुम 
बहुत सुन्दर ...रचा भैया ग़ज़ल यह  एक सचाई है
कहीं गहरे उतरती है यह मानो या न मानो तुम
गैर तो अक्सर अपने प्यार से दिल में उतरते हैं
ज़फ़ा अपने ही करते हैं ये मानो या न मानो तुम
 
गणेश भैया परिवेश पर चोट करती ये रचना बहुत सुन्दर है खास तौर पर ये मिसरे
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम
मैं अपनी भावनाए रोक नहीं पाया इसलिए आपकी तरह पर ही मैंने आपकी ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया देने की कोशिश की है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
2 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service