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2122    1212   22  

 

श्याम तेरी अलक में खो जाऊं

एक न्यारे खलक में खो जाऊं

 

नेह से आँख जो हुयी बोझिल

बंद तेरी पलक में खो जाऊं

 

तू अँधेरे में काश दिख जाये 

और मैं उस झलक में खो जाऊं

 

रूप ऐसा कि थे सभी पागल

मैं उसी छवि-छलक में खो जाऊं

 

है सुना वह तेरा ठिकाना है  

तो चलूँ उस फलक में खो जाऊं

 

 (मौलिक /अप्रकाशित )

 

 

 

 

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2017 at 7:32pm

आ० मिथिलेश जी , सादर आभात्र .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2017 at 7:31pm

आ० अनुज , बहुत बहुत आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2017 at 7:31pm

आ० रोहिताश्व जी , शुक्रिया .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2017 at 7:30pm

आ० निकोर जी , अनुग्रहीत हुआ  सादर .


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:12pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , तंग काफिया के लर भी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:12pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , तंग काफिया के लर भी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:12pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , तंग काफिया के लर भी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by रोहिताश्व मिश्रा on January 3, 2017 at 2:24pm
Vaah sir...
Comment by vijay nikore on January 3, 2017 at 11:50am

// तू अँधेरे में काश दिख जाये 

और मैं उस झलक में खो जाऊं //...

वाह ! बहुत ही खूबसूरत ख्याल है।

आपकी गज़ल पढ़ कर आनन्द आ गया, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 12:42am

आदरणीय गोपाल सर बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. सादर 

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