For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गरीब सैंटा की अमीरी ( लघु कथा ) जानकी बिष्ट वाही- नॉएडा

" आज कड़ाके की ठण्ड है।" कहते हुए उसने दोनों हाथों को आपस में रगड़ कर अपने अंदर गर्मी का अहसास जगाया। बदन पर पहनी एकमात्र कमीज और पतली सी सांता क्लॉज की ड्रेस उसको गर्म रखने में नाक़ाम लग रही थी।
" ममा ! देखो सैंटा " एक छह या सात साल का बच्चा उसकी ओर उत्सुकता से देखने लगा।
" सारी सुस्ती छोड़कर उसने मुस्कुराते मुखौटे के अंदर ठण्डी साँस भरी और मुठ्ठी टॉफियों के साथ गर्मजोशी से बच्चे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
"थैंक्यू सैंटा !" बच्चे ने लपक कर टॉफियां पकड़ ली।साथ ही उसके पापा ने उसकी, बच्चे के साथ कई तस्वीरें खींच ली।मुस्कुराता बच्चा बाय बोलता चला गया फिर तुरन्त लौट कर उसके पास आया और बोला -
"आप गरीब सेंटा हो ना ।" उसकी मासूम आवाज़ उसके दिल में धँस गई।
" आपने ऐसा क्यों बोला बेटे ?" सेंटा तो बहुत अमीर होता है।"
" अगर आप अमीर हो तो आपने टूटे चप्पल क्यों पहन रखे हैं देखो , बच्चे ने उसके पाँवों की ओर इशारा किया।
" उसने सकपका कर पाँवों को समेटने को कोशिश की पर उन्हें छुपाने की वहाँ कोई जगह ही नहीं थी।शोरूम से आती तेज़ रोशनी उसकी मज़बूरी को ढक नहीं पा रही थी।
" नहीं बेटा ! सैंटा तो दुनिया में सबसे अमीर होता हैं क्योंकि उसका दिल बहुत बड़ा होता है।और जिसका दिल बड़ा होता है वो गरीब कैसे हो सकता।" ये जादुई शब्द बच्चे के पापा ने बोले और उसने बच्चे के पापा की ओर आभार वाली नज़रों से देखा।
बच्चे ने अपने कोमल हाथ उसके खुरदुरे हाथों में रख दिए और हल्के से उन्हें दबाया।उसे लगा अमीर तो अब वो हुआ है।उसके मुस्कुराते सैंटा के मुखौटे के अंदर बह रहे गर्म आँसू किसी को दिखाई नहीं दे रहे थे।


जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् प्रकाशित
नॉएडा -उत्तर प्रदेश

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Janki wahie on December 21, 2016 at 1:20pm
सादर आभार आ. महेंद्र कुमार जी।
Comment by Janki wahie on December 21, 2016 at 1:19pm
सादर आभार आ. प्रतिभा जी
Comment by Janki wahie on December 21, 2016 at 1:18pm
तहेदिल से शुक्रिया आ.शहज़ाद जी।
Comment by Janki wahie on December 21, 2016 at 1:16pm
सादर आभार आ. सुरेन्द्र नाथ सिंह जी।
Comment by Janki wahie on December 21, 2016 at 1:15pm
सादर हार्दिक आभार आ. समर कबीर सर कथा पसन्द करने के लिए।
Comment by Janki wahie on December 21, 2016 at 1:14pm
सादर हार्दिक आभार आ. मिथिलेश सर जी. कथा पर आपकी उपस्थिति लेखक का उत्साहवर्धन करने वाली होती है।
Comment by Janki wahie on December 21, 2016 at 1:12pm
सादर हार्दिक आभार आ. रवि सर जी।आपके कथा पर प्रोत्साहन देने वाले शब्दों से टिप्पणी करना कथा और मेरे लिए सार्थक हुआ।आपका एक एक शब्द मार्गदर्शन करने वाला होता है।और बेहतर लेखन के लिए प्रेरित करता है।आपकी सूक्ष्म दृष्टि की कोई मिसाल नहीं क्योंकि कथा का शीर्षक वाक़ई में खटक रहा था।सादर
Comment by Mahendra Kumar on December 21, 2016 at 12:06pm
आदरणीया जानकी जी, अच्छी लघुकथा लिखी है आपने। हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by pratibha pande on December 21, 2016 at 11:36am

आदरणीया जानकी जी ,  आपकी इस रचना में फूल  और काँटें दोनों  दिखे    एक तरफ  सेंटा  बने बच्चे के  दर्द में हमारे आस पास की कडवी सच्चाई  और  दूसरी तरफ  बच्चे और पिता की कोमलता  ... एक और सशक्त कहानी आपकी कलम से ...हार्दिक बधाई आपको  .

Comment by Ravi Prabhakar on December 21, 2016 at 7:38am

आदरणीय जानकी जी, लघुकथा कहने का प्रयास अच्‍छा हुआ है। /" आज कड़ाके की ठण्ड है।" कहते हुए उसने दोनों हाथों को आपस में रगड़ कर अपने अंदर गर्मी का अहसास जगाया।/ यह सूक्ष्‍म अवलोकन लघुकथा में सर्द वातावरण को बाखूबी उभारने में सफल रहा है। कथानक भी बहुत अच्‍छा चुना है आपने। शोरूमज और मॉलज़ में अक्‍सर ऐसा देखने को मिल जाता है परन्‍तु कोई उस ओर ध्‍यान नहीं देता । सो आपकी बारीकबानी प्रशंसनीय है। कुल मिला कर यदि शीर्षक पक्ष को छोड़ दिया जाए तो यह एक सफल लघुकथा प्रतीत हो रही है जिस हेतु आपको असीम शुभकामनाएं । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service