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अर्पणा शर्मा : "गोलगप्पा"/हास्य कविता

रसना लपलपाये देख गोलगप्पा,
चलो हो जाये कुछ धौल धप्पा,
धनिया, पुदिना, कैरी की चटनी,
और जोरदार इमली का खट्टा,
है मिलाया इसमें गुड़ का मीठा,
हींग और जीरे का लगाया है तड़का,
हरदिल अजीज, लाजवाब शै है
ये गोलगप्पा ,
भरे बाजार,लिये दोना सबरे खड़े,
ना होता कोई हक्का-बक्का,
मुँह में घुलाया, फिर जीभ से,
दिया अंदर धक्का,
गले में यह जा अटका,
साँस आधी ऊपर आधी नीचे,
बड़ी मुश्किल से गटका,
पर तब भी मन न माना,
जल्दी से एक और लपका,
एक 'एकस्ट्रा' देना भैया,
पहले वाला टूटा कबका,
अरे आओ तुम भी खालो,
मैंने 'टोकन' ले लिया सबका,
हरदिल अजीज, लाजवाब शै है
ये गोलगप्पा ...!!

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Arpana Sharma on October 29, 2016 at 6:57pm
आदरणीय श्रीमान् सौरभ पांडेय जी - फुल्की पर आपकी रचना अवश्य ही पढूँगी। धन्यवाद
Comment by Arpana Sharma on October 29, 2016 at 6:54pm
आदरणीय श्रीमान् समर कबीर जी - आपने सही कहा 'तड़का' याने 'बघार' लगाना होता है और गोलगप्पे की मीठी चटनी और पानी में हींग, जीरे का तड़का लगाया जाता है। तभी तो वो पाचक जलजीरे की तरह फायदा करता है।
Comment by Arpana Sharma on October 29, 2016 at 2:10pm
आदरणीया प्राची सिंह जी, आदरणीय श्रीमान् समर कबीर जी,आदरणीय श्रीमान् सौरभ पांडेय जी -"गोलगप्पा"पसंद करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार । आप लोगों की सराहना से ऐसा लगता है कि मेरी रचना गोलगप्पे के स्वाद और मोह को हल्के-फुल्के रूप में प्रदर्शित करने में सफल रही। मजा तो तब है कि आप लोग जब भी गोलगप्पा उर्फ पानी-पूरी उर्फ पानी-बताशे का लुत्फ उठायें तो आपको ये कविता याद आये। पुनःश्च बहुत धन्यवाद ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 27, 2016 at 7:26pm

वाह! बड़ी स्वदिष्ट रचना.....

गोलगप्पे का नाम ही मुंह में पानी ला देता है , और आपने तो इतने सारे फ्लेवर्स पढ़ा पढ़ा कर पूरा पूरा ललचाया है..हाहाहा 

सौरभ जी की छंदबद्ध फुलकी भी याद आ गयी ...सवैया छंद में है शायद 

बहुत खूब 

हार्दिक बधाई 

Comment by Samar kabeer on October 27, 2016 at 5:22pm
मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,आपकी कविता सुनकर मुंह में पानी आ गया,अभी मुंह में तकलीफ़ है वरना आज इसका स्वाद ज़रूर चखते,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'हींग और ज़ीरे का लगाया है तड़का'जहां तक मेरा ख़याल है, तड़का बघार लगाने को कहते हैं,जो दाल सब्ज़ी में लगाया जाता है,गोलगप्पे में तड़का नहीं लगाया जाता ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 27, 2016 at 11:55am

अरे वाह ! गोलगप्पा के तो दिन बहुर गये ! वैसे शरद ऋतु आ ही गयी है. और यही मौसम है गोलगप्पे का ! इस गोलगप्पे को पानी-पुरी, पानी-बताशे भी कहते हैं और मेरे इलाहाबाद में इसे फुलकी कहते हैं. मैं भी, आदरणीया, गोलगप्पा का रसिया हूँ. 

हींग और जीरे का लगाया है तड़का,
हरदिल अजीज, लाजवाब शै है
ये गोलगप्पा ,
भरे बाजार,लिये दोना सबरे खड़े,
ना होता कोई हक्का-बक्का,
मुँह में घुलाया, फिर जीभ से,
दिया अंदर धक्का,

वाह ! वाह !

आपकी रचना अच्छी हुई है. आपने दिल खोल कर आत्मीय भाव पिरोये हैं. इसलिए रचना भी स्वादिष्ट हुई है. :-))

हार्दिक बधाई आ० अपर्णा जी. 

वैसे, अन्यथा न होगा, आदरणीया, यदि आप मेरी भी एक पुरानी रचना ’फुलकी’ को इसी परिप्रेक्ष्य में देख जाइए. हालाँकि वह इलाहाबादी भाषा में है, लेकिन हिन्दी की भरपूर छौंक होने से समझने अवश्य कोई दिक्कत नहीं आयेगी. यह आग्रह नहीं मात्र सूचना है. :-)) 

http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:177085

सादर

Comment by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 8:57pm
आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी - "गोलगप्पा" पसंद करने के लिए बहुत आभार ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 26, 2016 at 7:57pm
हा हा, सुन्दर महिमा मण्डन!

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