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अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी (नवगीत 'राज ')

खोलो दिल के वातायन प्रिय मैं आऊँगी

अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी

अलकन में नम शीत मलय की    

बाँध पंखुरी 

पंकज की पाती से भरकर  

मेह अंजुरी

ऊषा की लाली से लाल

हथेली रचकर

कंचन के पर्वत से पीली 

धूप  खुरच कर

कोना कोना मैं ऊर्जा से भर जाऊँगी

अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी

सुरभित कुसुमो के सौरभ को

भींच परों में

चार दिशाओं के गुंजन को

सप्तसुरों  में

बन बाँसुरिया नेह प्रणय की

करूँ पैरवी

तेरे कानों में आ घोलूँ  

राग भैरवी

साँसों की सरगम को झंकृत कर जाऊँगी

अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी

------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on September 12, 2016 at 11:44am

आद० आभा जी,आपको ये नवगीत पसंद आया मेरा लिखना सफल हुआ आपका तहे दिल से आभार | 

Comment by Abha saxena Doonwi on September 12, 2016 at 9:25am

वाह, बहुत सुंदर नवगीत रचा है आपने rajesh कुमारी जी बधाई ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 11, 2016 at 7:36pm

आद० समर भाई जी ,आपको नवगीत पसंद आया आपका दिल से बहुत बहुत आभार |

Comment by Samar kabeer on September 11, 2016 at 3:00pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत सुंदर नवगीत लिखा आपने,दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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