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बाँझ निवास (लघुकथा)राहिला

"अरी विभा देख जरा वहां"बस के आगे जा रहे वाहन की ओर इशारा करके सुधा बोली।

"क्या दिखाना चाह रही हो ,वो ट्रॉली?"

"हाँ,क्या ऐसा नहीं लग रहा उसे देख कर, जैसे सैकड़ो नन्हें मुन्ने नर्सरी के बच्चे पहली बार विद्यालय वाहन में सवार हो,झूमते ,गाते ,तालियाँ बजाते चले जा रहे हों।"

"फिर दौड़ाये तूने कल्पना के घोड़े"

"तो तू भी दौड़ाकर देख ,एक बार मेरी तरह।"

सुधा द्वारा चित्रित किये दृश्य को जब उसने ,उसकी नज़र से देखा तो भाव विभोर होकर बोली।

"कसम से सुधी! ये नर्सरी  वाहन में वृक्षारोपण के लिये जा रहे नन्हे पौधे ,हवा के साथ अठखेलियां करते वाकई मासूम बच्चों से लग रहे हैं।"

"बच्चे किसी के भी हों ,सुन्दर लगते हैं ना! एक जमाना था जब हर घर के आँगन या बाड़े में इन बच्चों से खूब रौनक हुआ करती  थी।"

"हाँ गाँव में तो अभी भी ग़नीमत है, लेकिन शहर में तो अब हर तरफ बाँझ निवास दिखाई देते हैं।"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on July 13, 2016 at 12:54pm

आदरणीय प्रतिभा दीदी!बहुत, बहुत आभार ।सादर नमन

Comment by pratibha pande on July 12, 2016 at 10:27pm

पेड़ों  से दूर होते जा रहे शहरी जीवन को अच्छा नाम दिया है ,  बधाई प्रेषित है आपको इस रचना पर प्रिय राहिला जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 12, 2016 at 6:23pm
मैं यह जानना चाहता हूँ कि बांझ/बंजर भूमि/धरती में 'भूमि/धरती' स्त्रीलिंग संज्ञा है, यहाँ 'निवास' यदि पुल्लिंग है तो यहाँ 'बांझ' शब्द सही रहेगा या 'रूढ़ा' या इस जैसा कोई अन्य शब्द। 'बांझ' उपमा के रूप में शायद पुल्लिंग शब्द के साथ भी प्रयुक्त कर सकते हैं । सम्मान्य गुणीजन कृपया मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा।
Comment by Rahila on July 12, 2016 at 1:26pm

आदरणीय रवि सर जी!आपकी स्नेहिल टिप्पणी ने मेरी दुविधा का निदान कर दिया ।बहुत, बहुत शुक्रिया ।सादर

Comment by Rahila on July 12, 2016 at 1:20pm

बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर जी!आपकी टिप्पणी और आपकी रचना पर उपस्थिति देख कर मन उत्साह से भर गया।सादर नमन

Comment by Rahila on July 12, 2016 at 1:08pm
बहुत, बहुत शुक्रिया,प्रिय जानकी दीदी!आपको रचना पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ।सादर
Comment by Ravi Prabhakar on July 12, 2016 at 11:47am

बहुत बढ़ीया आदरणीय राहिला जी ! /लेकिन शहर में तो अब हर तरफ बाँझ निवास दिखाई देते हैं।/ एक सामान्‍य सी दिखने वाली लघुकथा की यह पंक्‍ित अंदर तक हिला देना का माद्दा रखती है । प्रकृति से विमुख शहरों की स्‍िथती को इससे उत्‍तम कोई उपमा नहीं दी जा सकती । कथा का स्‍टीक शीर्षक चयन सराहनीय है । बधाई स्‍वीकारें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 10:08am

आदरणीया राहिला जी , छोटे छोते पौधों मे बच्चों को देखना , अच्छा लगा । पर्यावरण की दृष्टि से ये सही भी है । लघुकथा के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 8:01am
वाह ! प्रिय राहिला गज़ब का चित्रण और कथा ।हार्दिक बधाई
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 1:19pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय महेंद्र सर जी!आप ने रचना पसंद की सादर आभार ।

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