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2122 22 2

आ गये फिर गिरगिट जी
शुरू हुई अब गिट-पिट जी।1

रंग बदले कितने सब
हो गये हैं अब हिट जी।2

माप कोई जूते की
पाँव इनके हैं फिट जी।3

ढ़ाल लिया सबको शीशे
इस कला के डी.लिट. जी।4

राह इनकी रूकती कब
पास पड़े सब परमिट जी।5

रोशनी के ठेके हैं
बन गये हैं सर्किट जी।6

पास होते हरदम ही
काम आती बस चिट जी।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on June 30, 2016 at 7:38pm
आभार आपका!
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 30, 2016 at 4:26pm

वाह वाह क्या बात है,,,सुन्दर ,,,बधाई

कृपया ध्यान दे...

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