For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा- ग़ज़ल (जिसकी जितनी चाह है, वो उतना गमगीन (गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22   22

बात सही है आज भी , यूँ तो है प्राचीन
जिसकी जितनी चाह है , वो उतना गमगीन

फर्क मुझे दिखता नहीं, हो सीता-लवलीन

खून सभी के लाल हैं औ आँसू नमकीन

क्या उनसे रिश्ता रखें, क्या हो उनसे बात

कहो हक़ीकत तो जिन्हें, लगती हो तौहीन   

सर पर चढ़ बैठे सभी , पा कर सर पे हाथ

जो बिकते थे हाट में , दो पैसे के तीन

 

बीमारी आतंक की , रही सदा गंभीर

मगर विभीषण देश के , करें और संगीन

 

कुछ तो सचमुच भैंस हैं , बाक़ी भैंस समान

कोई ये समझाये अब , कहाँ बजायें बीन

 

घर की सारी झंझटें , हो जायेंगी साफ

पिछले हों संस्कार सब , सुविधा अर्वाचीन

********************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 2681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2016 at 4:55pm

कुछ तो सचमुच भैंस हैं , बाक़ी भैंस समान

कोई ये समझाये अब , कहाँ बजायें बीन.....हाहाहा आदरणीया आनंद आ गया नमन करता हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 12, 2016 at 4:52pm

अवश्य ! मुझे ही नहीं, आदरणीय अनुज महोदय, आपके आचरण और व्यवहार से पूरे प्रबन्धन को कष्ट हुआ करता है. उन सभी के आचरण से कष्ट होता है, जो उच्छृंखल आचरण के साथ पटल की चर्चाओं और रचनाओं में बकवाद की छौंक लगाया करते हैं.

आप ही नहीं सभी सदस्य जान लें, कि ’सदस्यों’ के ऐसे प्रतीत होते आचरणों पर प्रबन्धन-सदस्यों के बीच करीब हर पखवारे बातचीत होती रहती है. मैं यदि आपकी बात बार-बार आपके सामने रखता हूँ, तो यह आपकी आंतरिक ’समझ’ के ऊपर भरोसा कर ही रखता हूँ. कि आप ज़हीन हैं, समझ जायेंगे. किन्तु, मुझे अभी आश्वस्त होना बाकी है.

आप जानें महोदय, यदि ऐसी प्रवृत्ति या ऐसे आचरण पर समय-समय पर अंकुश न लगाया गया होता तो यह मंच अपने छः वसंत कत्तई न देख पाता. विकट विद्वानों की इस संसार में कोई कमी नहीं है. वे समझ के तौर पर अकाट्य होते हैं, लेकिन बेकार होते हैं. सामंजस्य बनाये रख कर, आत्मीयता से, बिना खिल्ली उड़ाये, ’सीखने-सिखाने’ का समरस माहौल बनाते हुए अपनी बातें रखने वाला प्रणम्य होता है. शेष की निर्मम थूका-फ़ज़ीहत होती है. यज्ञ में समिधा डालने वाले पण्डित होते हैं, आदरणीय, और विष्टा डालने राक्षस. जबकि आहूत यज्ञ में दोनों का आह्वान होता है. ओबीओ का मंच एक खुला यज्ञ है.

विश्वास है, आगे से आपको समझाना और अगाह नहीं करना पड़ेगा. 

सादर 

Comment by Anuj on June 12, 2016 at 4:24pm

आदरणीय सौरभ जी,

मुझे लगता है कि आपको मेरे इस मंच होने से बहुत कष्ट है, लेकिन ये कष्ट आपको आज के बाद नहीं उठना पड़ेगा.

सादर

Comment by Anuj on June 12, 2016 at 4:15pm

आदरणीय अनुज भाई - आपकी प्रतिक्रिया के अंत मे इस लाइन को जोड़ने का क्या मै कारण और अर्थ और उद्देश्य जान सकता हूँ ? आशा  करता हूँ आप मेरे इस प्रश्न का जवाब ज़रूर देंगे । 

// ‘भैसें हों चहुँ ओर तो, कहाँ बजाये बीन’ //  

आदरणीय गिरिराज जी,

“कोई ये समझाये अब” को ‘कोई अब समझाये ये’ करने पर 'ये' और 'ये' की तकरार होती है इस तरह की तकरार को एबे-तनाफुर कहते हैं. इस बात को आप भी जानते हैं. इस ऐब से बचने के लिए मैंने ये डमी लाईन प्रस्तुत की थी.  इस के अतिरिक्त इसका न कोई और कारण था न अर्थ और न उद्देश्य. मैंने ये बिलकुल नहीं कहाँ था कि आप इसे अपने शेर में शामिल कर लें. आप मुझसे हर तरह से वरिष्ठ हैं, आप खुद इससे बेहतर पंक्ति लिख कर इस शेर को पूरा कर सकते हैं.

मेरी इस पंक्ति की वजह से आप को कष्ट उठाना पड़ा इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ.

सादर

 

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 12, 2016 at 9:32am
बहुत खूब आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2016 at 7:29pm

आदरणीय अनुज भाई - आपकी प्रतिक्रिया के अंत मे इस लाइन को जोड़ने का क्या मै कारण और अर्थ और उद्देश्य जान सकता हूँ ? आशा  करता हूँ आप मेरे इस प्रश्न का जवाब ज़रूर देंगे ।

// ‘भैसें हों चहुँ ओर तो, कहाँ बजाये बीन’ //  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2016 at 7:24pm

आ. सौरभ भाई , आपने सही कहा , गलती मेरी से हो गई कि मै भैंस और बीन शब्द नीचे की लाइन मे देख के उसे मेरा ही शे र समझा, और पढते पढ्ते थक चुके होने के कारण पूरी लाइन भी नहीं पढा और बची हुई ज़िम्मेदारी निभाने के लिये पर्तिक्रिया देना शुरु कर दिया, अब पढा तो उस लाइन का छिपा हुआ मंतव्य समझ मे आया है ।
निश्चित ही वो पंक्ति इस सीखने-सिखाने के मंच में स्वीकार योग्य नही है ।

मै अपनी लापरवाही ( चाहे कारण थकावट हो ) आपसे क्षमाप्रार्थी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 11, 2016 at 7:05pm

आदरणीय अनुज महोदय,  मात्रिक बहरमें आपने जो कुछ कहा है वह सही है. इसी कारण फेलुन फेलुन जहाँ होगा उसके अंतर्निहित गुण स्वयमेव अनुकरणीय होंगे. मात्रिक बहर वस्तुतः ’बहरे मीर’ कहते हैं.

लेकिन, आदरणीय सज्जन, आपने इस मंच पर अबतक कितने दोहे प्रस्तुत किये हैं ? कितनों दोहों पर आपने अबतक तार्किक टिप्पणी की है ? फिर, प्रस्तुत संदर्भ में दोहे को लेकर आप द्वारा कुछ कहना यदि असहज होगा या वैसा प्रतीत होगा, तो उस पर कुछ कहना आपको वाचाल क्यों बना रहा है ? 

एक प्रारम्भ से कहता रहा हूँ, आपकी टिप्पणियों को मैं ही नहीं, इस मंच का पूरा प्रबन्धन बहुत ग़ौर से देखता और पढ़ता है. आपकी जानकारी पर कभी उँगली नहीं उठी है. आगे भी नहीं उठेगी, यदि, आप सार्थक चर्चा में सहज बने रहेंगे. अन्यथा, महोदय, आप ’टिकलिंङ’ का खेल खेलेंगे तो आपसे बहुत कुछ कहना-सुनना आवश्यक होगा. यह मंच सीखने-सिखाने के लिए समर्पित मंच है. यहाँ हम सभी समवेत सीखते हैं. कोई जानकार ’ज्ञान’ नहीं ’बघारता’. बल्कि, सीखने के क्रम में सारे सदस्य अपने अनुभव, अपनी सीख, अपनी बातें ’साझा’ करते है. सीखने के क्रम में जो अनुभव और तात्कालिक प्राप्ति हुई होती है, उसी को साझा करने की प्रक्रिया का नाम ओबीओ है. अन्यथा, यह मंच विकट विद्वानों की कद्र नहीं करता. क्योंकि वे सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के सबसे बड़े अवरोध हुआ करते हैं और हम जैसे सीखने वालों के लिए तीक्ष्ण नोक बने रहते हैं. इसी कारण, इस मंच पर रचनाओं को समादृत करने की परम्परा है,  न कि रचनाकारों को. जैसी रचना वैसा ही रचनाकार. 

आप सीखने के क्रम में अनुभवी और जानकार हैं तो आपका सदा स्वागत है, अन्यथा तिर्यक बहसबाजी की आदत है तो आपकी समझ को शीघ्र प्रणाम किया जायेगा. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 11, 2016 at 7:04pm

आदरणीय गिरिराज भाई

// ‘भैसें हों चहुँ ओर तो, कहाँ बजाये बीन’ जैसे किसी परिवर्तन से आप इससे आसानी से निपट सकते हैं. //

क्या ओबीओ पर इन जैसे वाक्यों के सापेक्ष बहस होगी ? मुझे दुख है गिरिराज भाई, आपने स्वीकार किया. जबकि आपसे या आपकी जगह किसी से अपेक्षा सहज प्रतिकार की होनी थी.

यह आपकी कैसी और कौन सी सदाशयता है ? यह नम्रता नहीं हो सकती है आदरणीय.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2016 at 7:02pm

आदरणीय रवि भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service