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प्यास होंठों पे निगाहों में उदासी रह गई

ग़ज़ल

जबसे उनसे मिलने की चाहत अधूरी रह गई
प्यास होंठों पे निगाहों में उदासी रह गई

बैठकर धीरे से लम्बी कार में वो चल दिए
बैलगाड़ी प्यार की पीछे हमारी रह गई

फूल गुलदस्ते किताबें ख़त जला डाले सभी
फिर भी उनके प्यार की दिल में निशानी रह गई

दिन महीने साल बीते जाम आँखों से पिए
मुद्दतों के बाद भी मुझमें ख़ुमारी रह गई

हम मिले मिलके चले कुछ दूर राहे इश्क़ में
मिल गई मंज़िल मगर कुछ बेक़रारी रह गई

बेचकर सबकुछ भी दे पाया ना शादी का दहेज
एक मुफ़लिस बाप की बेटी कुँवारी रह गई

उसकी यादें उसकी बातें ज़ेहन से जाती रहीं
सिर्फ़ उसकी बेवफ़ाई की कहानी रह गई

उड़ गए सारे परिंदे जलता गुलशन छोडकर
एक बुलबुल शाख़ पे बैठी बेचारी रह गई

किसके मिलने के लिए 'सूरज' धड़कता है ये दिल
ज़िंदगी में जाने किसकी इंतज़ारी रह गई

डॉ सूर्या बाली 'सूरज'
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 1:43pm
वाह वाह आ.सूरज जी क्या बात है

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