For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख - गिरिराज भंडारी

22  22  22  22  22  22    

 

कोई दीप जलाओ, कि अँधेरा यहाँ न हो ।

कभी रोशनी की बात चले तो गुमाँ न हो ।।

 

जो शय बढ़ा दे दूरियां उसको खुदी कहें ।

हर हाल में कोशिश रहे, ये दरमियां न हो ।।

 

है फ़िक्र ये कि पंछी उड़ें किस फलक पे अब।

ऐसा भी  ख़ौफ़नाक  कोई आसमाँ न हो ।।

 

उजड़ीं है कई आंधियों में बस्तियां मगर ।

जैसे ये घर उजड़ गया, कोई मकाँ न हो ।।

 

मंज़िल से जा मिले जो कभी राह तो मिले।

रस्तों में चाहे संग मिलें कहकशाँ न हो ।।

 

बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख ।

लेकिन जो बाग़ लूट ले वो बाग़बाँ न हो।।

 

हाँ, इस जहाने फानी में महमान हैं सभी,  

लेकिन ख़ुद अपने घर में कोई मेहमाँ न हो

***************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 749

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 20, 2015 at 7:38am

आदरणीय सौरभ भाई , एक शे र भी आपकी पसंदगी के पैमाने मे खरा उतरे तो गज़ल कहना सार्थक हो जाता है , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2015 at 10:15pm

आखिरी शेर के बरअक्स आपकी ग़ज़ल को झूमता हुआ पढ़ गया आदरणीय गिरिराज भाईजी. 

दाद दाद !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 10:00am

आदरणीया कल्पना जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:59am

आदरणीय बैजनाथ भाई , हौसला  अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:58am

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपके अभ्यास की सराहना को करनी ही पड़ेगी , क्या बात है । बुरा मनना , और माफी की भाषा अब तो छोड़ दीजिये , आप तो मुझे अच्छे से जानते हैं ।

आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख के मन आनन्दित है ।  आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:55am

आदरणीय रवि भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थति  और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:53am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

इस बहर मे  --  22  मात्रा को   112   , 211   , 121   कर लेने की छूट होती है , बस शर्त ये है कि  लय न टूटने पाये ,  गिनते समय उसे       22   ( फेलुन ) गिना जाता है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:50am

आदरणीय श्याम नारायण भाई , गज़ल की सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 17, 2015 at 5:47pm

आदरणीय गिरिराज साहेब  बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है| ......बधाई 

बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख ।

लेकिन जो बाग़ लूट ले वो बाग़बाँ न हो।।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 17, 2015 at 4:05pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. आपने फैलुन फैलुन की आवृत्ति में प्राप्त छूट लेते हुए शानदार ग़ज़ल कही है. इस ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. आपने जिस चतुराई से इस बह्र को निबाहते हुए अशआर कहे है वो अद्भुत है. इन मिसरों में कहीं भी पूरा चौकल नहीं बन पा रहा है या बनता है तो द्विकल छूट जाता है. फिर भी कही भी गेयता बाधित नहीं हो रही है. क्योकि आपने एक और बह्र को भी कुछ अशआर में पूरी तरह निभा लिया है. वो बह्र है- 221 - 2121 - 1221 - 212

मैंने केवल अभ्यास के क्रम मतले और एक दो मिसरों में तनिक छेड़छाड़ की है इस हिमाकत के लिए माफ़ी सही निवेदन कर रहा हूँ-

 

221 - 2121 - 1221 - 212

इक दीप जलाओ अँधेरा यहाँ न हो ।

अब रोशनी की बात चले तो गुमाँ न हो ।।.............. शानदार मतला (ओरिजनल वाला)

          

जो शय बढ़ा दे दूरियां उसको खुदी कहें ।

हर हाल कोशिशें रहें, ये दरमियां न हो ।।......... बढ़िया शेर 

 

है फ़िक्र ये कि पंछी उड़ें किस फलक पे अब।

ऐसा भी  ख़ौफ़नाक  कोई आसमाँ न हो ।।...................... बढ़िया शेर 

 

उजड़ीं है कितनी आंधियों में बस्तियां मगर ।

जैसे ये घर उजड़ गया, कोई मकाँ न हो ।।............. वाह वाह 

 

मंज़िल से जा मिले जो कभी राह तो मिले।

रस्तों में चाहे संग मिलें कहकशाँ न हो ।।................. बहुत खूब 

 

बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख ।

लेकिन जो बाग़ लूट ले वो बाग़बाँ न हो।।............ शानदार 

 

हाँ, इस जहाने फानी में महमान हैं सभी,  

लेकिन ख़ुद अपने घर में कोई मेहमाँ न हो...........बहुत बेहतरीन शेर 

इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service