For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

''मन महकाये जब बौंराई अमिया''

22/22/22/22/22

तुमौर मै हमारी छोटी सी दुनिया

सागर से बारिश बारिश से नदिया

.

मीठी होती है मेहनत की रोटी

मैंने देखी है माँ दरते चकिया

.

ए.सी कूलर ने छीनी आबो-हवा

याद आती है नीम-छांव की खटिया

.

पक्की छत में जगह उसी को न मिली

सदियों रहा जो बन छप्पर की थुनिया

.

याद मुझे पुरनम बस तू है आती

मन महकाये जब बौंराई अमिया

.

दिल का सौदा क्या खाक वो करेगा?

नुकसान-नफ़ा सोचे तबीयते बनिया

.

औराके-दिल पर बोश हर्फ़ हर्फ़ ये  

अशयार मेरे हैं सब तेरी पतिया

_____________________________

मौलिक व् अप्रकाशित © 'जान' गोरखपुरी

_____________________________

Views: 624

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 29, 2015 at 12:20pm
जी आदरणीय गोपाल सर!मात्रिक बहर में एक और कोशिश की थी..आगे और बेहतर करने का प्रयास रहेगा।आ.इसी प्रकार स्नेह बनाये रक्खें।सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2015 at 10:23am

प्रिय कृष्ण , मुझे एक प्रयोग जैसी लगी यह गजल . तुक तीन तरह के होते है अगर आप उत्कृष्ट कोटि के तुक लेकर  रचना करे  तो आपकी प्रतिभा के साथ न्याय होगा ,

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 25, 2015 at 12:55pm

तहेदिल से आभार आ० श्याम नरायण वर्मा जी!

सादर!

Comment by Shyam Narain Verma on September 25, 2015 at 12:09pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 10:22pm
नेट कनेक्टिविटी की समस्या के चलते ठीक प्रकार से जुड़ नही पा रहा हूँ।

आदरणीय मिथिलेश सर उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए तहेदिल से आभारी हूँ।जी आ.पूर्व में वीनस सर से भी मात्रिक बहर पर चर्चा के दौरान अंत में द्विकल के प्रयोग की चर्चा हुयी थी...और उसी अनुसार बह्र में रखने के क्रम में "
सागर /से बा/ रिश है / बारिश /से नदि/ या"रख कर सोचा भी था पर मुझे "सागर से बारिश बारिश से नदिया"जाने क्यों अधिक लय में लगा सो चार अंत में फ़ा को नही रक्खा इसकी इक वजह गजल में रदीफ़ का न होना भी रही। रफ़ीफ़ बढ़ने पर वो बात नही आ प् रही थी।आगे इस बह्र में अंत में द्विकल जरूर रखने का प्रयास करूँगा।आ.इसी प्रकार अपने अनुज का मार्गदर्शन करते रहे।सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 7:23pm
आ. कान्ता जी गजल के भाव आप तक पहुँचे जानकर ख़ुशी हुयी रचनाकर्म फलित हुआ।सादर आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 3:33pm

आदरणीय कृष्ण भाई जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

इस प्रस्तुति के हवाले से  कुछ महत्वपूर्ण बातें जो मैंने अनुभव की साझा कर रहा हूँ. फैलुन फैलुन की आवृत्ति वाली वे बहरे अधिक प्रसिद्द हुई है जिनमें फैलुन फैलुन की आवृत्ति के बाद एक फा भी लिया जाता है. इससे मिसरे के विन्यास में पूर्णता का आभास होता है. जैसे आपका ये मिसरा - सागर से बारिश बारिश से नदिया

इसे अगर यूं कहे तो मिसरे का विन्यास ज्यादा अच्छा लगता है - सागर से बारिश है, बारिश से नदिया

दूसरी बात फैलुन फैलुन की आवृत्ति वाली बह्रों में शब्द-कलों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि मिसरों के वाचन के क्रम में लयभंगता की स्थिति उत्पन्न न हो. जैसे आपका मिसरा

------------ सागर /से बा/ रिश है / बारिश /से नदि/ या----- यानी -------

--------------फैलुन/फैलुन/फैलुन/फैलुन/फैलुन/फा 

इसमें पांच चौकल और एक द्विकल ने मिसरे को कितना लयात्मक कर दिया है. 

अब इस मिसरे को देखिये----पक्की छत में जगह उसी को न मिली---- इसमें चौकल बनने की कठिनाई ने इसमें लयभंगता की स्थिति ला दी है. किसी भी पद्य विधा  में लयात्मक सम्प्रेषण की प्राथमिकता होती है और यह केवल और केवल शब्द कलों के माध्यम से ही संभव है. सादर 

Comment by kanta roy on September 24, 2015 at 1:17pm
देहात को जैसे समेट लिया है आपने अपनी रचना में आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी । नदियाँ ,रोटी , छप्पर और अमुआ की बौर की महक पढते हुए भावो को मन को भी बौरा गई । बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
51 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service