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चेप्टर-२ -कुछ क्षणिकाएँ :....

चेप्टर-२ -कुछ क्षणिकाएँ :

1.

वो साकार है या निराकार है
पता नहीं
वो है
मगर दिखता नहीं
फिर भी वो
जीवन का आधार है
शायद उसी को
दुनिया कहती है
ईश्वर


………………............

2.
कितना विचित्र है
हमारा साथ होना
एक लम्बी चुप
सांसें भी निःशब्द
एक दूसरे के वास्ते
भाव शून्यता
पत्थर सा प्यार
दम तोड़ते सात फेरों के वादे
उठायेंगे सात जन्म
जर्जर  होता
दाम्पत्य जीवन

……………………..........

3.

ये कौन मेरी हथेलियों पे
कोरा आसमान लिख गया
स्मृति मेघ की बूंदों से
मन विहग में संचित
सारे अरमान लिख गया
मैं देखती रही अपलक
क्षितिज को चूमते
उस जलधि को
जिसकी लहरों पर
चुपके से कोई
मेरा नाम लिख गया


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 14, 2015 at 12:55pm

वाह आदरणीय मिथिलेश सर वाह बहुत सुंदर सुझाव दिया है आपने  .... क्षणिकाओं पर आपकी आत्मीय प्रशंसा और सुझाव का ये बंदा हार्दिक आभार व्यक्त करता है। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 13, 2015 at 10:31pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत सुन्दर और भावपूर्ण क्षणिकाएं हुई है हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर..

पहली क्षणिका में ईश्वर के विषय में है ये पहली पंक्ति पढ़ते ही समझ आ जाता है इसलिए अंत थोड़ा और कलात्मक किया जा सकता है यथा- 

वो साकार है या निराकार है 
पता नहीं 
वो है 
मगर दिखता नहीं 
फिर भी वो 
जीवन का आधार है 
शायद उसी को 

/
दुनिया बुलाती  है
कई कई नामों से.....

/

दुनिया आतुर रहती है 

नाम देने को 

/

देती है दुनिया 

कितने ही नाम 

सादर 

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