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तमीज से गुजर मियाँ - सुलभ

गजल
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बहर - 212 1212 1212 1212
काफिया - अर, रदीफ - मियाँ

किस्म-किस्म के जहर हैं हमपे बेअसर मियाँ
उम्र बीती आदमी का झेलते जहर मियाँ

दर्द बाँटने अगर तू आया है अवाम का
आसमान से जरा जमीन पर उतर मियाँ

सब तुम्हारे गुम्बदों की शान से सिहर गए
झोपड़ी मेरी तबाह कर गए कहर मियाँ

चाह मंजिलों की थी न जीत की ललक रही
वक्त ही गुजारना था, तय किए सफर मियाँ

अंधड़ों से लड़ता एक दीप मिल ही जाएगा
देख अपने दिल में एक बार झांक कर मियाँ

ताज-तख्त ठोकरों पे रहते आए हैं यहाँ
प्यार की गली है ये तमीज से गुजर मियाँ

रक्ख दी थीं म्यूजियम में कीमती धरोहरें
हो गयीं सफाई में कहीं इधर-उधर मियाँ

-------- सुलभ अग्निहोत्री

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Comment by सूबे सिंह सुजान on August 15, 2015 at 8:27pm
वाह वाह साहब बहुत खूबसूरत शायरी है
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 15, 2015 at 7:28pm

बहुत-बुहुत बाअस र मियां  

Comment by Sushil Sarna on August 13, 2015 at 3:57pm

उम्र बीती आदमी का झेलते जहर मियाँ
दर्द बाँटने अगर तू आया है अवाम का


आदरणीय बहुत सुंदर प्रस्तुति हुई है। शेर दर शेर दाद कबूल फरमाएं।

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:16pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीया Rajesh Kumari जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:16pm

बहुत-बहुत आभार Ravi Shukla जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:16pm

बहुत-बहुत आभार Laxman Dhami जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:15pm

बहुत-बहुत आभार Amod Bindouri जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:15pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय Giriraj Bhandari जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:14pm

बहुत-बहुत आभार Jitender Aulakh जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:13pm

बहुत-बहुत आभार Mithilesh Vamankar जी !

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