For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुझ रहा है हौसला मौला

२१२ २२१२ २२
बुझ रहा है हौसला मौला
राह कोई तो दिखा मौला

नाम पे उसके छलकते हैं
आँख दरिया है' क्या मौला

जैसे पढ़ते हैं किताबों को
काश पढ़ते चेहरा मौला

शाख पर हम घर बनाते गर
हौसला होता जवाँ मौला

जेब खाली और मैं मुज़रिम
जिंदगी है गुमशुदा मौला

रात आधी और नींद नहीं
है उसी का सब किया मौला

है उसे कोई फ़िक्र ही कब
ख़्वाब देकर चल दिया मौला

मन अभी जो बादलों में था
वो ज़मी पे आ गिरा मौला

दर्द हद से भी जियादा है
टूटना है दिल बुरा मौला

बेवफ़ा वो हो गया शायद
डूबता है मन मेरा मौला

करके मोहब्बत 'परी' देखो
आ गए हम हैं कहाँ मौला


© परी ऍम. 'श्लोक'
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 927

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pari M Shlok on July 10, 2015 at 9:29am
Sushil Sarna जी आपका दिल से आभार ..........!!
Comment by Pari M Shlok on July 10, 2015 at 9:26am
vinaya kumar singh जी पसन्दीदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया
Comment by Pari M Shlok on July 10, 2015 at 9:22am
फ़िक्र का वज़न १२ है शायद कृपया बताएं
चेहरा का नहीं मालूम था मगर कहाँ और जवाँ दोनों पर शक था की काफ़िया गलत है हम सही करके पेश करेंगे जो शेर ग़ज़ल में सही नहीं है आपका मार्गदर्शन हमेशा चाहिए :)
मिथिलेश वामनकर जी
Comment by विनय कुमार on July 9, 2015 at 11:20pm

// जेब खाली और मैं मुज़रिम
जिंदगी है गुमशुदा मौला //, वाह , वाह , बहुत खूब । बधाई आपको आदरणीय..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 8:30pm
आदरणीया परी जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई।
जवां चेहरा और कहाँ काफ़िया नहीं हो सकते इस ग़ज़ल में

फ़िक्र ही कब-वाले शेर में बह्र देख लीजियेगा।
Comment by Sushil Sarna on July 9, 2015 at 8:02pm

दर्द हद से भी जियादा है
टूटना है दिल बुरा मौला

बेवफ़ा वो हो गया शायद
डूबता है मन मेरा मौला

सुंदर भावों से सजी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया. .

Comment by kanta roy on July 9, 2015 at 6:26pm
दर्द हद से भी जियादा है
टूटना है दिल बुरा मौला

बेवफ़ा वो हो गया शायद
डूबता है मन मेरा मौला.......... बहुत खूब मोहब्बत में अल्फाज पिरोये है आपने आदरणीया परी एम श्लोक जी .... बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई शिज्जू शकूर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। गिरह भी खूब हुई है। हार्दिक बधाई।"
24 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया याद तो उन्हें भी आया और शायर को भी लेकिन…"
49 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया इस शेर की दूसरी पंक्ति में…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. मतले की कठिनाई का अच्छा निर्वाह हुआ।…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई चेतन जी , सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "टपकती छत हमें तो याद आयी"…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उदाहरण ग़ज़ल के मतले को देखें मुझे इन छतरियों से याद आयातुम्हें कुछ बारिशों से याद आया। स्पष्ट दिख…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"सहमत"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गुणीजनो के सुझावों से यह और निखर गयी है। हार्दिक…"
3 hours ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service