नन्हा यश अंग्रेजी के शब्द जैसे गुड-बैड, स्माल-बिग ,ब्यूटीफुल-अग्ली(ugly) सीख रहा था .एक दिन स्कूल से आते ही उसने अंग्रेजी की पुस्तक निकाली और बोला
“माँ,ये देखो ये फोटो बिलकुल तुम्हारी जैसी है ,मैंने इसे ही ब्यूटीफुल लिखा तो टीचर ने गलत कर दिया .उन्होंने इस फ्रॉक वाली को ब्यूटीफुल बताया और इसे अग्ली,ऐसा क्यों? “
“बेटा,जिसे तुम मेरी जैसी समझ रहे हो वह तो सांवली है जबकि ये गोरी –चिट्टी है,इसलिए सुंदर वही हुई ना “
यश माँ को ध्यान से देखने लगा , रंग भेद की पहली कक्षा में उसकी प्रविष्टि हो चुकी थी .
( मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आभार और धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी .विषय आपको पसंद आया जान ख़ुशी हुई .
बहुत ही प्रभावशाली लघु कथा हुई आ० रीता गुप्ता जी,एक अलग ही विषय पर एक गंभीर मुद्दे पर ऐसी मानसिकता के बीज रोपे जातें हैं खुद ब खुद नहीं उगते आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,आभार .आपकी टिप्पणियाँ और लिखने की प्रेरणा दे रही है .धन्यवाद .
प्रदूषित मनोभावों को शाब्दिक करने केलिए हार्दिक धन्यवाद. शुभकामनाएँ..
आदरणीय रीता जी,
सहज शब्दों में आधुनिक मनसिकता को कथा में उतार दिया है. गोरा मतलब सुन्दर, ये अंग्रेजियत का बोझ उठाये फ़िर रहे हैं.
कितनी लड़कियों की शादी इसी मानसिकता के कारण रुक जाती है. वो इसी सुन्दरता के अलग भाव के पाठ का कारण होता है.
इस लघु कथा के लिये के बार फ़िर से बधाई.
आदरणीय वीर जी ,धन्यवाद हौसला आफजाई हेतु
आदरणीय श्री कृष्णा मिश्र जी ,आभार
''रंग भेद की पहली कक्षा में उसकी प्रविष्टि हो चुकी थी'' बहुत ही बेहतरीन लघुकथा हुयी है आ० रीता जी!हार्दिक बधाई!
बहुत सुन्दर रचना आदरणीया रीता गुप्ता जी. सादर बधाई !
सच कहा आपने बाल मन में रंग भेद की पहली कक्षा में उसकी प्रविष्टि हो चुकी है जो समय के साथ गहरी भी हो जायेगी...
Aditya Kumar जी आप इसे साझा ना करे ,मुझे ये बात ठीक नहीं लग रही .आपको पसंद आया धन्यवाद .
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