For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चकोर सवैया (7 भगण +गुरु लघु )          23 वर्ण

 

चाबुक खा कर भी न चला अरुझाय गया सब घोटक साज 

अश्व अड़ा पथ बीच खड़ा न मुड़ा न टरा अटका बिन काज

सोच रहा  मन में असवार  यहाँ इसमे कछु है  अब राज

बेदम है यह ग्रीष्म प्रभाव चले जब सद्य मिले जल आज 

मत्तगयन्द (मालती) सवैया (7 भगण + 2 गुरु)   23 वर्ण

 

बीत बसंत गयो जब से  सखि तेज प्रभाकर ने हठि ठानी

मादकता अरु शीतलता सब  आतप तेज सु मध्य सिरानी

उष्ण हुआ सब वात बिना श्रम देह समस्त पसीजत पानी  

सूखत कंठ बुझात  न प्यास जु चक्रत लूक हवा हहरानी  

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 5:36pm

अर्थात अवधी का ’अरुझना’ भोजपुरी तक आते-आते ’अझुराना’ हो जाता है. जैसे, ’उनकर बतिया काहें अझुरा गइलऽ ?’
तांगा (Tonga) वाला अनुभव सुन कर अच्छा लगा.. :-))
सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2015 at 2:44pm

आ० सौरभ जी

अरुझाय गए ही सही है  i सही शब्द उलझना है जिसे  हमारे यहाँ अवधी  में अरझना  या अरुझना  कहते हैं --दृग उरझत टूटत कुटुम

     यह घोड़े वाली बात सत्य घटना है i हमने गांव से ही तांगा कर लिया पर वह घोड़ा जोअडा तो फिर टस से मस नहीं हुआ . निदान दूसरा घोड़ा लाया  गया तब यात्रा शुरू हुयी . सादर .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 2:04am

आदरणीय गोपाल नारायनजी, किस दुनिया में ले गये ! घोड़ा, चाबुक, असवार ! इस पहले सवैये का वातावरण ऐसा है, मानों मैं आज से दो सौ साल पीछे पहुँच गया हूँ.. :-))
इस सवैये के पहले पद में एक शब्द ’अरुझाय’ आया है. यह यही है या ’अझुराय’ है ? मैं ’अरुझाय’ का अर्थ नहीं समझ पा रहा हूँ.
और, अरुझाय गया सब घोटक साज  या अरुझाय गये सब घोटक साज ?

व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध तो दूसरा ऑप्शन ही होगा.

दूसरे सवैये का वातवरण मनोहारी बन पड़ा है.. :-)))

उष्ण हुआ सब वात बिना श्रम देह समस्त पसीजत पानी  
सूखत कंठ बुझात  न प्यास जु चक्रत लूक हवा हहरानी  
वाह ! ग्रीष्म का सुन्दर दृश्य !

वैसे आज की भाषा में सवैया प्रस्तुति हो तो आनन्द का मज़ा दूना हो जाय.
सादर शुभकामनाएँ

Comment by shree suneel on May 24, 2015 at 9:16am
उफ्फ! ये गर्मी..
उष्ण हुआ सब वात बिना श्रम देह समस्त पसीजत पानी..
आदरणीय गोपाल नारायण सर, बहुत हीं सुन्दर छंद. हृदय से बधाई आपको.
Comment by Shyam Narain Verma on May 22, 2015 at 11:22am

बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना बहुत 2 बधाई आदरणीय 

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service