For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :-गले प रख के वो तलवार बोले

बह्र :- मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन फ़ऊलुन

गले प रख के वो तलवार बोले
वही कहना जो ये सरकार बोले

हमें बर्बाद कर देगा तिरा सच
मिरी बस्ती के इज़्ज़तदार बोले

हमारा ख़ानदानी वस्फ़ है ये
हमेशा जानिब-ए-हक़दार बोले

कई नामों से हमको जानते हैं
कोई तूफ़ाँ,कोई मंझधार बोले

बुराई पीठ के पीछे करेगा
मिरे मुँह पर ज़रा इक बार बोले

है मुझ को आरज़ू उस हमसफ़र की
जो वीरानों को भी गुलज़ार बोले

क़ुसूर इन शाईरों का भी नहीं जी
वही देंगे जो ये बाज़ार बोले

"समर" तुम दुश्मनों पर टूट पड़ना
सिपह सालार जब यलग़ार बोले

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 11:09pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर धन्य भी हुवा और मुतमइन भी,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 26, 2015 at 9:01pm

वाह वाह ! मतले से शुरु हुआ कमाल मक्ते तक बरकरार रहा..
मतले के लिए विशेष बधाई तो कह ही रहा हूँ, इन शेरों को भी बार-बार पढ रहा हूँ --
हमें बर्बाद कर देगा तिरा सच
मिरी बस्ती के इज़्ज़तदार बोले

कई नामों से हमको जानते हैं
कोई तूफ़ाँ,कोई मंझधार बोले

है मुझ को आरज़ू उस हमसफ़र की
जो वीरानों को भी गुलज़ार बोले

हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय ..

Comment by Samar kabeer on May 16, 2015 at 11:05pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 16, 2015 at 11:05pm
जनाब हरी प्रकाश दुबे जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 16, 2015 at 11:04pm
जनाब वीनस केसरी जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 9:49am

क्या बात है ! आदरनीय समर कबीर भाई , पूरी ग़ज़ल बे मिसाल कही है , एक एक शे र  के लिये अलग अलग मुबारक बाद कुबूल करें ॥ बस पढ़ के मज़ा आ गया  ।

Comment by Hari Prakash Dubey on May 16, 2015 at 9:39am

आदरणीय समर कबीर सर ,संपूर्ण रचना ही शानदार है ,हार्दिक  बधाई आपको ! सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 1:13am

जिंदाबाद ग़ज़ल है
वाह वाह .. एक एक शेर पर हज़ार बार दाद

एक बात की और ध्यान दिलाना चाहूंगा
मफ़ाइलुन - १२१२
मफ़ाईलुन - १२२२

Comment by Samar kabeer on May 15, 2015 at 2:45pm
जनाब श्री सुनील जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 15, 2015 at 2:45pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service