1222---1222---1222---1222 |
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ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा |
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा। |
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सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे साहिब |
सुखन में है सुखन कितनी, यही बस सोचना होगा। |
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उजाले कुछ सदाकत के संभालों आखिरी दम को |
न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा। |
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रवां रफ़्तार में खोया तू अपनी कामयाबी की |
न तेरा छूट जाए घर, इसे अब रोकना होगा। |
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दिया है कब निज़ामत ने किसी को मांगने से कुछ |
अगर हक़ चाहिए तुमको जबर से छीनना होगा। |
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अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ |
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा। |
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हमेशा जी-हुजूरी से यहाँ सब काम होते है |
हुनर अब जेब में रख लो कि नाहक ही फ़ना होगा। |
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Comment
आदरणीय निर्मल भाई जी आप ग़ज़ल पर यहीं प्रतिक्रिया दे, मेरे लिए सदैव आपके सुझाव और मार्गदर्शन अमूल्य है. सुधारने का पूरा प्रयास करूँगा. सादर
आदरणीया प्रतिभा जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।
आज के आधुनिक दौर की सचाई को खूब दर्शाया आदरणीय मितिलेश वामनकर भाई, विशेष कर इन लाइनों में ..... अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ |
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा। सादर बधाई .... |
आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत ही शानदार रचना है
/दिया है कब निज़ामत ने किसी को मांगने से कुछ
अगर हक़ चाहिए तुमको जबर से छीनना होगा/ बहूत खूब .हार्दिक बधाई ! सादर
आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति से ही मन को संतोष हो जाता है उस पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल जाए तो झूम जाता हूँ. आपके मार्गदर्शन अनुसार कुछ को तो करता हूँ. अमूल्य सुझाव और सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ. नमन
दिया है कब निज़ामत ने किसी को मांगने से कुछ
अगर हक़ चाहिए तुमको जबर से छीनना होगा।
ग़ज़ब !
इस शेर की धमक से मन तृप्त हो रहा है ..
उजाले कुछ सदाकत के संभालों आखिरी दम को .. कुछ को तो किया जाये तो व्याकरण सम्मत तो होगा ही अर्थ से भी सँभल जायेगा.
न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा।
रवां रफ़्तार में खोया तू अपनी कामयाबी की
न तेरा छूट जाए घर, इसे अब रोकना होगा।
अय हय .. बहुत खूब !
ढेर सारी दाद स्वीकार कीजिये आदरणीय.
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर, स्नेह और सराहना के लिए हार्दिक आभार, नमन
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