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(एक तरही ग़ज़ल )“सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं" ( गिरिराज भंडारी )

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रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं  --

रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं

शम्सो क़मर - चाँद  सूरज

 

तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं

सब ख़ाक हो चुका यहाँ  कोई शरर नहीं

रो ले अगर, तेरा बिना  रोये गुज़र  नहीं

लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं

 

सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना

मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं

 

मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक दें

लेकिन, अकेले भिड़ पड़े ये कारगर नहीं

 

कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें  

धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं

ज़िंदाँ – कारागार , ज़रर – नुक्सान

 

क्यों इब्न ही रहे किन्हीं आँखों का नूर अब

क्यों बिंत कोई, आज भी नूरे नज़र नहीं

इब्न – बेटा , बिंत – बेटी

 

दुश्वारियों ने खुद ही जिन्हें हौसला दिया

वो क्यूँ करे गिला कि कोई हमसफर नहीं

 

हर चीज़ रंग रोज़ बदलती रही है , तब

ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं

 

हर लम्हा कह रहा है, यही रोज़ बस हमें 

“सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं" 

**************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

Views: 1156

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2015 at 7:53am

आदरणीय विजय भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2015 at 7:51am

आदरणीय खुरशीद भाई , क्षमा मांग के मुझे शर्मिन्दा न करें , उम्र मे बड़ा आपसे ज़रूर हूँ, पर ज्ञान मे आपसे बहुत छोटा हूँ। अनुज के रूप मे मेरी उम्र आपको स्वीकार करती है । ऐसे ही मेरी रचनाओं पर नज़र करते रहियेगा , ताकि क्रमशः खुद मे कुछ सुधार कर पाऊँ । अरूजी तालीम मेरी बिल्कुल नहीं है , बस दो चार बह्र मे गज़ल कहते रहता हूँ । आपका पुनः आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2015 at 7:43am

आदरणीय अजय भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2015 at 7:42am

आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , कुछ अशआर कोट करने के योग्य आपको लगे तो गज़ल कहना सार्थक हुआ । स्नेह बनाये रखें । आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2015 at 7:40am

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , हौसला अफ्ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2015 at 7:39am

आदरणीय महर्षि त्रिपाठी भाई , सराहना के लिये आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2015 at 7:38am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 5:42am
तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं
सब ख़ाक हो चुका यहाँ कोई शरर नहीं ॥
बहुत सुन्दर ग़ज़ल, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर बधाई।
Comment by khursheed khairadi on February 12, 2015 at 12:40am

आदरणीय गिरिराज सर ,आपका स्नेह अनुज पर बना रहे, आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए क्षमापार्थी हूं |रही बात फेसबुक की तो फेसबुक पर ग़ज़लों की दुर्गत देखकर मैंने तो फेसबुक पर जाना ही कम कर दिया है ,वहाँ मीरो-ग़ालिब से कम तो कोई है ही नहीं ,अपनी तो इतनी औकात नहीं है |सादर 

Comment by ajay sharma on February 11, 2015 at 10:26pm
speechless .....bas pad hi raha hoo abhi tak ....wah wah wah wah wah wah

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