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परिवर्तन - (अतुकांत): गिरिराज भंडारी

परिवर्तन

*******

 

बून्द की नाराजगी का संज्ञान

सागर ले ही

ज़रूरी नहीं

फिर भी नाराजगी बून्द की अपनी स्वतंत्रता है

प्रकृति प्रदत्त

 

संज्ञान अगर सागर ले भी ले तो

खुद में कोई परिवर्तन भी करे ये नितांत ज़रूरी नहीं  

वैसे हर नाराजगी कोई परिर्वतन ही चाहती हो किसी में

ये भी ज़रूरी नहीं

 

कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है

कुछ स्वांतः सुखाय

अपने ज़िन्दा होने के सबूत के बतौर

 

वैसे तो जीवंतता का एक अहम तत्व है

परिवर्तन

अब, औरों में नहीं

तो ख़ुद में सही 

*************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 25, 2015 at 9:48pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 25, 2015 at 9:29pm

नाराज़ग़ी व्यवस्था में मिसफिट हो जाने की अवश परिणति है, जिसका संप्रेषण चीखमचिल्ली या आरोपित मौन या फिर बेसाख़्ता रोने से होता है. व्यवस्था की व्यापकता न समझ पाना भी इस नाराज़ग़ी का महत्त्वपूर्ण कारण है.
इस आधार पर आपकी इस वैचारिक कविता को समझ रहा हूँ, आदरणीय गिरिराज भाईजी. इस परिप्रेक्ष्य में आपने नाराज़ग़ी से सम्बन्धित कई विन्दु स्थापित किये हैं. और आखिर में -

वैसे तो जीवंतता का एक अहम तत्व है
परिवर्तन
अब, औरों में नहीं
तो ख़ुद में सही
परिवर्तन ही वह विन्दु है जो क्रोध को सकारात्मक प्रारूप देता है.

आपकी वैचारिकता सधे शब्दों में अभिव्यक्त हुई है.
हृदय से बधाई एवं शुभकामनाएँ.

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 25, 2015 at 7:37pm
वैसे तो जीवंतता का एक अहम तत्व है
परिवर्तन
अब, औरों में नहीं
तो ख़ुद में सही ।
प्रकृति ने नाराज़ होने और दुखी रहने का हक़ सभी को दिया है, विशेषतः एकाकी बूँद को , जिसका स्वंतत्र अस्तित्व क्षणिक है और उसी अस्तित्व के लिए उसे कहीं न कहीं जल्द से जल्द विलीन होना है , जीवंतता के लिए , बने रहने के लिए। यह भी एक परिवर्तन तो है , जीवंतता के लिए।
भाव अच्छे हैं , बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।
Comment by somesh kumar on January 25, 2015 at 5:00pm

भाव की गहनता अदभुत है |बूंद की सागर से नराजगी और सागर का उसे दूर करना ना करना |नारजगी के विविध रूप ,और जीवंत होने के लिए परिवर्तन |

बस नतमस्तक होता हूँ विचारों की इस गहनता से |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2015 at 4:03pm

आदरणीय गिरिराज सर सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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