For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - अज़ब बनाया हुआ फरिश्तो (मिथिलेश वामनकर)

121 - 22 / 121 - 22 / 121 - 22 / 121 – 22

 

बड़े ही जोरो से इस ज़हन में अज़ब धमाका हुआ फरिश्तो

फिज़ा में हलचल, हवा में दिल का गुबार छाया हुआ फरिश्तो

 

किसे पड़ी है सुकून से जो मुआमला क्या हमें बताये

वहां पे ऐसा नहीं हुआ था असल में ऐसा हुआ फरिश्तो

 

न पेश करना किसी का दामन, न गेसुओं से शिकस्त काँधे

हरेक लम्हां हयात का ये बहुत गुजारा हुआ फरिश्तो

 

गिरां से जो था कि मुब्तला अब बड़े सुकूं से वो सो रहा है

रहम कज़ा का चलो मिला जो सदी का जागा हुआ फरिश्तो

 

जहां परेशां है नक्शगर से, अजाब-ए-मातम गम-ए-जां ख़ाका

ये देवताओं ने चित्र कितना अजब बनाया हुआ फरिश्तो

 

सियासती जो दयार उनका, हमें तो मितली सी आ गई थी

किसी का थूका हुआ कही पे, किसी का चाटा हुआ फरिश्तो

 

यकीन ताजिंदगी हमारा वो साथ मानो निभा ही लेगा

जरा सही पर हमें किसी पर गज़ब भरोसा हुआ फरिश्तो

 

 

------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर

------------------------------------------------------

(संशोधित ग़ज़ल: आदरणीय गिरिराज सर और आदरणीय वीनस भाई जी के मार्गदर्शन अनुसार)

Views: 1059

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 3, 2015 at 6:36pm

आदरणीया प्रतिभा जी ग़ज़ल के इस प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. हार्दिक धन्यवाद 

Comment by दिनेश कुमार on January 22, 2015 at 6:43am
Theek kah rahe ho bhai Mithilesh ji...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 22, 2015 at 1:33am

आदरणीय दिनेश भाई जी अभी कद इतना बड़ा नहीं हुआ कि बड़प्पन दिखा सकूं. केवल विद्यार्थी हूँ.  पहले केवल तुकबंदी करता था अब ग़ज़ल कहने लगा हूँ पर अच्छी ग़ज़ल कहना अभी कोसो दूर है.   आप हम सब गुनीजनों से सीख रहे है. इस मंच ने जितना दिया है उसे बता नहीं सकता. रोज़ सीखने मिलता है. पोथियों में बंद ज्ञान साझा हो रहा है या कहिये अमृत वर्षा हो रही है ... भाई हम तो लपक लिए.

Comment by दिनेश कुमार on January 21, 2015 at 7:15pm

yeh toh aapka badappan hai jo aisa sochte hain. Bahut umda gazal hui hai.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 21, 2015 at 7:13pm

आदरणीय दिनेश भाई जी मुक्तकंठ सराहना के लिए आपका बहुत बहुत आभार ... दिनेश भाई जो कुछ है इसी मंच से और गुणीजनों से पाया है.

Comment by दिनेश कुमार on January 21, 2015 at 5:55pm

aap toh bhai ustaad ho gaye ho.... Waaah


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 21, 2015 at 3:23pm
आदरणीय गिरिराज सर आपके मार्गदर्शन का परिणाम है ये ग़ज़ल। हृदय से आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 21, 2015 at 3:21pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका आशीर्वाद मिल गया रचना सार्थक हुई। नमन।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 21, 2015 at 2:42pm
आदरणीय कृष्ण सिंह जी सराहना के लिए बहुत बहुत आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2015 at 10:52am

आदरणीय मिथिलेश भाई , कोई किसी का इशारा समझ ले , न केवल समझे तद अनुरूप काम भी कर ली हो सच बड़ी खुशी होती है। 

आपको ढेरम ढेर बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service