For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

मिटाये से नहीं मिटती न जाने याद क्‍यों उसकी

बनी तस्‍वीर है प्‍यारी जिगर में आज भी जिसकी

न हो जब पास वो मेरे लगे ये जिन्‍दगी वैसे

सजी हो चॉंद की महफिल न हो पर चॉंदनी जैसे

बता यह बात दुनिया को नही मुझको हँसाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

बना कर नाँव कागज की चला मैं ढूढ़ने उसको

किया था प्‍यार बचपन से जवानी आने तक जिसको

न चलती नाँव कागज की हकीकत आज भूले हम

न लौटेगा कभी बचपन इसी का है मुझे अब गम

मगर अब ढूढ़ कर उसको मुझे अपना बनाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

करे दिल याद उसको जब न थमते अश्‍क क्‍यों मेरे

कहे दिल आज भी उसको न है कोई सिवा तेरे

कभी मैं भेजना चाँहू लिखी जो प्‍यार की पाती

न उसका है पता मुझको न सपनो में कभी आती

कबूतर भी नहीं जिससे मुझे पाती पठाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 671

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 13, 2015 at 5:59pm

कभी मैं भेजना चाँहू लिखी जो प्‍यार की पाती

न उसका है पता मुझको न सपनो में कभी आती

कबूतर भी नहीं जिससे मुझे पाती पठाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

बहुत ही खूबसूरत!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:26am

आ0 भाई अखंड जी , सुन्दर गीत के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Akhand Gahmari on January 12, 2015 at 10:43am

आदरणीया डाक्‍टब्‍र प्राची सिंह जी आपका स्‍नेह और आशीर्वाद मिला रचना आपको अच्‍छी लगी रचना सफल हुई, नमन आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2015 at 5:11pm

प्रेम में विरह दंश की इस अभिव्यक्ति पर बधाई प्रेषित है आ० अखंड गहमरी जी 

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:52am

आदरणीय सोमेश कुमार  जी आपका स्‍नेह रचना को मिला नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:52am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका स्‍नेह रचना को मिला नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:51am

आदरणीय गणेश बागी जी आपका स्‍नेह और आशीर्वाद का फल है, रचना आपको अच्‍छी लगी रचना सफल हो गई, नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:42am

आदरणीय हरि प्रकाश दूबे जी आप की स्‍नेह मिला रचना सफल हुई नमन आपको

Comment by somesh kumar on January 10, 2015 at 9:47pm

न चलती नाँव कागज की हकीकत आज भूले हम

न लौटेगा कभी बचपन इसी का है मुझे अब गम

कभी मैं भेजना चाँहू लिखी जो प्‍यार की पाती

न उसका है पता मुझको न सपनो में कभी आती

सम्पूर्ण रचना सुंदर भावनावों का कलेवर है और जो बात अपने दिल की लगी वो मुद्रित कर दी |इस रचना पर हार्दिक बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2015 at 9:37pm

सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय गहमरी जी, रचना अच्छी लगी बधाई स्वीकार करें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों को केंद्र में रख कर कही गई  इस उम्दा गजल के लिए बहुत-बहुत…"
25 minutes ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, अच्छी  ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. अपनी टिप्पणी से…"
49 minutes ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाई जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छी प्रयास है । आप को पुनः सृजन रत देखकर खुशी हो रही…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय बृजेश जी प्रेम में आँसू और जदाई के परिणाम पर सुंदर ताना बाना बुना है आपने ।  कहीं नजर…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service