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तेरा दिया जन्म,मुझे स्वीकार नहीं

तेरा दिया जन्म

मुझे स्वीकार नहीं

जन्म स्थान

मुझे स्वीकार नहीं

यह नाम

मुझे स्वीकार नहीं

स्वीकार नहीं मुझे

कर्म करना, और   

भाग्य से बंध जाना

मुझे स्वीकार नहीं

स्वीकार नहीं मुझे

तेरे तथा-कतिथ दूतों के

नैतिकता-अनैतिकता के निर्देश

उनके छल भरे उपदेश

तेरे नाम पर रचे, उनके

षडयन्त्र भरे परिवेश

मैं विद्रोही तेरी माया का

आ ,मुझे नरसिंह बनकर

हिरण्यकश्यप की तरह मार दे

या बुद्ध बना कर मुझे  

मध्य मार्ग पर उतार दे !!  

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 4, 2014 at 11:44pm

सही कहा सोमेश भाई आपने ,आपका धन्यवाद !

Comment by somesh kumar on December 4, 2014 at 10:49pm

आ ,मुझे नरसिंह बनकर

हिरण्यकश्यप की तरह मार दे

या बुद्ध बना कर मुझे  

मध्य मार्ग पर उतार दे !!  

निश्नदेह अब या तो बुद्ध बनने या बुद्धू बनने की जरूरत है |उस ईश्वर के नाम पर होने वाला छलावा अब इंसान पर भारी पड़ने लगा है |

 

Comment by Neeraj Nishchal on December 4, 2014 at 7:01pm
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी आपकी रचना से आपने यह सिद्ध कर दिया कि कवि छू लेता है ऋषियोँ की उँचाइयोँ को और उन्हे शब्दोँ मेँ उतार देता आपको इस रचना के लिये लाख लाख बधाई प्रेषित हैँ ।
Comment by seematiwari on December 4, 2014 at 5:04pm

आ ,मुझे नरसिंह बनकर

हिरण्यकश्यप की तरह मार दे

या बुद्ध बना कर मुझे  

मध्य मार्ग पर उतार दे !!   ...क्या बात है!!

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय हरिप्रकाश जी ...आपकी यह रचना गज़ब की दार्शनिकता से  परिपूर्ण है......सादर अभिवादन

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