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चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहीं

साथ मेरे चलों , तो चलों उम्र भर ,
दो कदम साथ चलना गॅवारा नहीं।
तुम अधूरे इधर , मैं हूँ अधूरा उधर ,
दोनों आधे जिये , ये गॅवारा नहीं ।

तुम जो कह दो शुरू, तो शुरूआत हो
तुम जो कह दो खतम , सॉस थम जोयगी ।
पंथ कांटों का हो या कि फूलों भरा
तुम नहीं साथ में , ये गॅवारा नहीं ।

लाख नजरों में दिलकश नजारे रहे
किंतु आँखों की देहरी को न छू सके
मेरे सपनों के घर में सिवाय तेरे ,
चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहीं

मैं अकेला रहूँ या रहूँ भीड मैं
तुम बढाना नहीं हाथ मेरी तरफ
ये जमाना करें , लाख मुझपे सितम
एक तुझपे सितम , ये गॅवारा नहीं।

.

अजय कुमार शर्मा
( मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 692

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Comment by Shyam Narain Verma on December 2, 2014 at 11:10am

 सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई।

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