कहावत है की प्यार जहाँ, दर्द, वहाँ , आखिर ऐसा क्यूँ ?
प्यार, दर्द, एहसास, सच और झूठ सब मिलकर ' छुपा -छुपी ' का खेल खेलने का फैसला किया ! और जैसे ही दर्द ने छुपाने को कहा सब अपने-अपने जगह छुप गए, फिर दर्द ने गिनती सुरु की और सब पकडे भी गए, पर प्यार पकड़ा नहीं गया, क्यूंकि प्यार गुलाब की झाड़ियों में जा छुपा था, सब ने मिलकर प्यार को खोज निकाला, फिर दर्द ने प्यार को खीचा, गुलाब की झाड़ियों में छुपे होने से दर्द को जोर लगाकर खीचने से गुलाब के कांटे प्यार की आँखों में लग गए जिससे प्यार अँधा हो गया, सब बोले अब ऐ अंधे के पास कौन रहेगा और कौन इसको लेकर घुमायेगा, सब बोले थोड़े समय तक हम इसके साथ रह सकते है पर हमेशा नहीं, हमेशा उसके साथ कौन रहेगा इसका फैसला वो सब नहीं कर पा रहे थे तो सब ने मिलकर भगवान् के पास जाने की सोची, फिर सब मिल भगवान् के पास गए, भगवान् ने सबकी सुनी और उन्होंने फैसला सुनाया कि, प्यार तू सदा अँधा रहेगा और दर्द को सजा सुनाते हुए कहा कि तू सदा प्यार के साथ ही रहेगा बस तब से प्यार अँधा, जहाँ प्यार, दर्द भी वही........................
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